कबीर के दोहे
अभ्यास
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिएः
1. कैसी वाणी बोलनी चाहिए?
उत्तर: मीठी और मधुर वाणी बोलनी चाहिए।
2. कबीर सच्चाई और झूठ को किसके समान मानते हैं?
उत्तर: सच्चाई तप के समान है। झूठ पाप के समान है।
3. किसके हृदय में ईश्वर रहता है?
उत्तर: जिसके हृदय में सच्चाई हैं उसके हृदय में ईश्वर रहता हैं।
4. खजूर के पेड़ से किसे छाया नहीं मिलती?
उत्तर: खजूर के पेड़ से पंथी (यात्रियों) को छाया नहीं मिलती।
II. तीन-चार वाक्यों में उत्तर लिखिए :
1. खजूर के पेड़ से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर: खजूर का पेड़ लंबा और ऊँचा होता है, इसलिए उससे राहगीरों को छाया नहीं मिलती । उसमें उगनेवाले फल भी बहुत ऊपर होते हैं। ऐसे ही इन्सान भी बड़ा कहलाने से बड़ा नहीं होता । दूसरों के लिए उपयोगी होने पर ही वह महान बन सकता है।
2. मन से बुरे विचार कैसे मिट जाते हैं?
उत्तर: बुरे गुणों को मिठाकर मन को पवित्र शुद्ध रख सकते हैं। तब मन से बुरे विचार मिट जाते हैं।
3. हमें किस तरह की बातें करनी चाहिए?
उत्तर: अहंकार या घमंड न हो, सरल मीठे बातें करना चाहिए।
4. भगवान का स्मरण मनुष्य कब और क्यों करता है?
उत्तर: सब लोग दुःख और विपत्ति के समय में भगवान का स्मरण करते हैं। लेकिन सुख प्राप्त करने के लिए स्मरण करते हैं
5. सच और झूठ में क्या अंतर है?
उत्तर: सत्य बोलने के समान दूसरी कोई तपस्या नहीं, साधना नहीं, इसके विरोध में झूठ बोलने या झूठ व्यवहार से बढ़कर कोई पाप या बुरा कर्म नहीं है।
III. विलोमार्थक शब्द लिखिए :
उदाः सत्य × असत्य
1. धर्म × ________
2. न्याय × ________
3. चेत × ________
4. हित × ________
5. शांत × ________
6. सफल × ________
उत्तरः
1. धर्म × अधर्म
2. न्याय × अन्याय
3. चेत × अचेत
4. हित × अहित
5. शांत × अशांत
6. सफल × असफल।
IV. उदाहरण के अनुसार समानार्थक शब्द लिखिए:
उदाः अपेक्षा – इच्छा
1. अग्नि – __________
2. उत्तर – __________
3. कनक – __________
4. खग – __________
5. गुरु – __________
6. तारा – __________
उत्तरः
1. अग्नि – आग
2. उत्तर – जवाब
3. कनक – सुवर्ण, सोना
4. खग – द्विज, पक्षी (पंखी)
5. गुरु – अध्यापक, शिक्षक
6. तारा – नक्षत्र।
V. उदाहरण के अनुसार शब्दों के अन्य रूप लिखिए :
नमूनाः बानी – वाणी
1. साँच – _________
2. हिरदै – _________
3. सीतल – _________
4. जुग – _________
5. पंथी – _________
उत्तरः
1. साँच – सच
2. हिरदै – हृदय
3. सीतल – शीतल
4. जुग – युग
5. पंथी – पंची।
VI. पद्यभाग पूर्ण कीजिए :
ऐसी बानी _____________।
__________ आपहुँ सीतल होय॥
साँच बराबर ______________।
___________ ताके हिरदै आप॥
उत्तरः
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय ॥
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप॥\
VII. नीचे लिखे शब्दों को उलटकर लिखिए – देखिए इनसे कौन-से शब्द बनते हैं।
उदाः नाच – चना
1. याद – ___________
2. रमा – ___________
3. नव – ___________
4. लता – ___________
5. हरा – ___________
6. नदी – ___________
उत्तरः
1. याद – दया
2. रमा – मार
3. नव – वन
4. लता – ताल
5. हरा – राह
6. नदी – दीन
VIII. नीचे लिखे शब्दों को उचित वर्गों के अंतर्गत लिखिए :
पीपल, वसंत, रविवार, शनिवार, ग्रीष्म, होली, नीम, दशहरा, अक्तूबर, खजूर, हेमंत, ताड़, सितंबर, मंगलवार, ईद, क्रिसमस, वर्षा, मई, बुधवार, फरवरी
उत्तरः photo
IX. वाक्य शुद्ध कीजिए :
1) मोहसीन का माँ बीमार है।
मोहसीन की माँ बीमार है।
2) हमारी भाषा के नाम हिंदी है।
हमारी भाषा का नाम हिन्दी है।
3) दिल्ली भारत की राजधानियाँ है।
दिल्ली भारत की राजधानी है।
4) कृष्णा, गोदावरी, कावेरी दक्षिण भारत की नदी हैं।
कृष्णा, गोदावरी, कावेरी दक्षिण भारत की नदियां हैं।
5) सच का विलोम शब्द झूठा है।
सच का विलोम शब्द झूठ है।
6) शीतलता का अर्थ ठंडा है।
शीतल का अर्थ है ठंडा।
7) अध्यापिका पाठ पढ़ाता है।
अध्यापिका पाठ पढ़ाती है।
X. शब्दों को शुद्ध कीजिए :
1. समुन्द्र – _________
2. कक्षा – _________
3. पंक्षी – _________
4. सध्या – _________
5. कम्र – _________
6. मिठी – _________
उत्तरः
1. समुन्द्र – समुद्र
2. कक्क्षा – कक्षा
3. पंक्षी – पक्षी
4. सध्या – संध्या
5. कम्र – क्रम
6. मिठी – मीठी
XI. निम्नलिखित शब्द एक जैसे लगते हैं, परंतु इनके अर्थ समान नहीं हैं। अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
1) बाघ – भाग
बाघ : जंगली जानवर।
बाघ जंगली जानवर है।
भाग : हिस्सा
कश्मीर भारत का भाग है।
2) अनल – अनिल
अनल : आग।
अनल की ज्वाला फैली है।
अनिल : हवा।
शीतल अनिल बह रहा है।
3) परिणाम – परिमाण
परिणाम : नतीजा
कल मेरी परीक्षा का परिणाम आएगा।
परिमाण : नाप
इस लोहे का वजन परिमाण में 10 किलो निकला।
4) माता – माथा
माता : माँ
मेरी माता बड़ी परोपकारी है।
माथा : मस्तक
दुर्घटना में उसका माथा फूट गया।
5) बाल – भाल
बाल : केश
बाल कटवाने हैं।
भाल : मस्तका
हिन्दी भारत माता के भाल की बिंदी है।
6) ओर – और
ओर : तरफ
वह शहर की ओर गया है।
और : तथा
राम और सीता वनवास गए।
XII. कन्नड़ या अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए :
photo
XIII. दोहे कंठस्थ कीजिए।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय ॥
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप ॥
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे होय ॥
सीखें हम दो अच्छी बातें –
1) सबसे कड़वी बात, लड़ाई।
सबसे मीठी सुलह – सफाई।
2) कुहू कुहू कोयल,
झूठ न बोल।
सच कहने में
लगे न मोल।
3) तू-तू, मैं-मैं
गरम लड़ाई,
तू चुप,
मैं चुप खतम लड़ाई।
1. लड़ाई किस बात से होती है?
उत्तर: कड़वी बात से लड़ाई होती है।
2. किस प्रकार की बात पर मोल नहीं लगता?
उत्तर: सच कहने में मोल नहीं लगता है।
3. चुप रहने का लाभ क्या है?
उत्तर: चुप रहने से लड़ाई नहीं होती है।
कबीर के दोहे
कबीर के दोहे
कवि परिचय :
कबीरदास (सन् 1398-1518) “वाणी के डिक्टेटर” थे। नीरु-नीमा नामक मुसलमान जुलाहे परिवार में उनका पालनपोषण हुआ। सहजता, निर्भीकता इनके काव्य के प्रमुख गुण हैं। इनकी वाणी में समाज सुधार की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे बड़े दार्शनिक कवि थे। कबीर का काव्य बुद्धि और हृदय का संगम है। इतना ही नहीं, वे बड़े संत कवि थे। उन्हें जीवन-नीति के धर्म गुरु भी कहा जाता है। कबीर की रचनाएँ ‘बीजक’ नाम से संकलित हैं, जिनके तीन भाग हैं – साखी, सबद, रमैनी।
दोहे का भावार्थ :
1) ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय ॥
कबीर कहते हैं कि आप ऐसे भाषा बोलिए जिससे आपका अहंकार मिट जाए। मन में जो गर्व है, घमंड है वह दूर होना चाहिए। आपकी बोल से दूसरों को शीतलता मिले और अपना मन भी शीतल हो जाए। इससे दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचता ही है, इसके साथ साथ खुद को भी आनंद का अनुभव होता है।
कहने का तात्पर्य है कि हमारी वाणी मधुर और मीठी होनी चाहिए। उसे सुनकर दूसरों के मन की कडुवाहट दूर हो और वे भी हमारे साथ मीठा व्यवहार करने के लिए प्रेरित हों।
शब्दार्थ :
• बानी – वाणी, बचन;
• आपा – अहंकार, गर्व, घमंड;
• खोय – गँवाना, छोड़ देना, नष्ट करना;
• औरन – दूसरे लोगों को, औरों को;
• सीतल – ठंडा।
2) साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप ॥
जो सत्यवादी है अर्थात् जो सच बोलता है, जिसका व्यवहार भी सही होता है, उसका चरित्र भी नेक होता है। भगवान भी ऐसे ही लोगों को अपनाते हैं।
कबीर इस सच्चाई के बारे में कहते हैं – सत्य बोलने के समान दूसरी कोई तपस्या नहीं, साधना नहीं। इसके विरोध में झूठ बोलने या झूठे व्यवहार से बढ़कर कोई पाप या बुरा कर्म नहीं है। जिसके दिल में सच्चाई होती है, जो हमेशा सच ‘ बोलता है, सही मार्ग पर चलता है, भगवान भी उसीके हृदय में निवास करते हैं। कहने का तात्पर्य है – भगवान को भी सत्यवादी ही प्रिय होते हैं।
शब्दार्थ :
• साँच – सच, सत्य, रेड;
• बराबर – समान;
• तप – तपस्या, साधना;
• जाके – जिसके;
• ताके – उसके;
• हिरदै – हृदय, दिल;
• आप – भगवान, परमात्मा।
3) बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
इन्सान धन-दौलत या पद-अधिकार से चाहे जितना भी बड़ा बने, बड़प्पन का सही निशान तो उसका परोपकार ही होता है। इस भाव को कबीरदास ऐसे प्रस्तुत करते हैं – खजूर का पेड़ लंबा और ऊँचा होता है, इसलिए उससे राहगीरों को छाया नहीं मिलती। उसमें उगनेवाले फल भी बहुत ऊपर होते हैं। ऐसे ही इन्सान भी बड़ा कहलाने से बड़ा नहीं होता। दूसरों के लिए उपयोगी होने पर ही वह महान् बन सकता है। तात्पर्य यह है कि मानव को परोपकारी होना चाहिए।
शब्दार्थ :
• बड़ा – लंबा और चौड़ा, अधिक ऊँचा;
• भया – होना, बनना;
• खजूर का पेड़ – ताड़ जैसा एक लंबा पेड़;
• पंथी – पथिक, राही, यात्री
4) दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे होय॥
जो सुख प्राप्त करता है वह एक दिन दुःख भी भोगता है। उसी तरह जिसे आज दुःख का अनुभव करना पड़ा है उसे . भविष्य में सुख जरूर मिलेगा। लेकिन हमें दोनों समय भगवान का स्मरण करना चाहिए। इसी विचार को कबीर ऐसे कहते हैं – सब लोग दुःख और विपत्ती के समय में भगवान का स्मरण करते हैं। लेकिन सुख प्राप्त होने पर भगवान की याद नहीं करते। कबीर कहते हैं कि अगर सुख के समय में भी भगवान की याद करते तो दुःख की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। कहने का तात्पर्य है कि सुख और दुख दोनों भगवान की ही देन है, इन दोनों को हम समान मनोभाव से स्वीकार करें, तो हमारा जीवन सुगम होता है।
शब्दार्थ :
• सुमिरन – स्मरण करना, याद करना;
• काहे – क्यों, किसलिए, किस कारण से;
• कोय – कोई;
• होय – होता है।
ಕಬೀರ್ ಜೋಡಿಗಳು ಕನ್ನಡದಲ್ಲಿ ಸಾರಾಂಶ:
ಕವಿ ಪರಿಚಯ ಕಬೀರ್ ದಾಸ್ 1998 1918 ಕಬೀರ್ ದಾಸರು ಕಟ್ಟು ಮಾತಿನಿಂದ ಸಮಾಜದಲ್ಲಿನ ಕೆಟ್ಟ ಪದ್ಧತಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ವಿರೋಧಿಸುತ್ತಿದ್ದರು. ಇವರು ನೀರು ಮತ್ತು ನೀಮ ಎಂಬ ಮುಸಲ್ಮಾನ ನೇಕಾರರ ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಬೆಳೆದರು ನೇರ ನುಡಿ ಮತ್ತು ನಿರ್ಭಯ. ಇವರ ಕಾವ್ಯದ ಪ್ರಮುಖ ಗುಣವಾಗಿದೆ. ಇವರು ಹುಟ್ಟಿನಿಂದಲೇ ಕ್ರಾಂತಿಕಾರಿ ಮನೋಭಾವ ಉಳ್ಳವರಾಗಿದ್ದರು. ಇವರ ನುಡಿಯಲ್ಲಿ ಸಮಾಜದ ಸುಧಾರಣೆಗಳ ಭಾವನೆಗಳು ತುಂಬಿದವು. ಇವರು ದಶಮಿಕ ಕವಿಯು ಆಗಿದ್ದರು. ಕಬಿರವರ ಕಾವ್ಯ ಬುದ್ಧಿ ಮತ್ತು ಹೃದಯದ ಸಮ್ಮೇಳನವಾಗಿದೆ ಇದಲ್ಲದೆ ಅವರು ಉನ್ನತಮಟ್ಟದ ಸ್ವಂತ ಕವಿ ಆಗಿದ್ದಾರೆ. ಜೀವನ ಮತ್ತು ನೀತಿಯ ಧರ್ಮಗುರು ಎಂಬ ಸಹ ಹೇಳಲಾಗುತ್ತದೆ. ಕಭಿರಾವರ "ಕಲಕಿಗಳು ಬೀಜಗ" ಎಂಬುವ ಹೆಸರಿನಲ್ಲಿ ಸಂಕಲನಗೊಂಡಿವೆ. ಇವರಲ್ಲಿ ಮೂರು ಭಾಗಗಳು ಇದೆ. ಸಾಹಸಬಾದ ರಾಮೈನ
ಕಬೀರ್ ಹೇಳುತ್ತಾರೆ. ಮನುಷ್ಯ ಯುಗ ಯುಗಗಳಿಂದ ಕೈಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುತ್ತಾ ಬಂದಿದ್ದಾನೆ. ಆದರೆ ಈ ರೀತಿ ಮಾಡಿದರು. ಸಹಮನ ಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಲು ಅವನಿಂದ ಸಾಧ್ಯವಾಗಲಿಲ್ಲ. ಮನುಷ್ಯನು ಕೈಯಲ್ಲಿ ಹಿಡಿಯುವ ಜಪಮಾಲೆಯನ್ನು ಬಿಟ್ಟು ಹೃದಯಕ್ಕೆ ಸಮಾನವಾದ ಜಪಮಾಲೆಯನ್ನು ತಿರುಗಿಸಬೇಕು. ಅದರ ಅಂಶವೇನೆಂದರೆ ಮನುಷ್ಯ ಆಡಂಬರದ ಭಕ್ತಿ ಬಿಟ್ಟು ಹೃದಯದಿಂದ ಬಗವಂತನ ಜಪ ನಾಮಸ್ಕಾರಗಳು ನಾಮಸ್ಮರಣೆ ಮಾಡಬೇಕು.
ಕಬೀರ್ ಅವರು ಹೇಳುವುದೇನೆಂದರೆ ಒಳ್ಳೆಯ ಸಿಹಿಯಾದ ನುಡಿಗಳನ್ನು ಆಡಬೇಕು. ಈಗ ಒಳ್ಳೆಯ ನುಡಿ ಆಡಿದರೆ ಮನಸ್ಸಿನ ಅಹಂಕಾರ ದೂರವಾಗುತ್ತದೆ. ಈ ನುಡಿಗಳು ಬೇರೆಯವರ ಮನಸ್ಸಿಗೆ ಸಂತೋಷ ಕೊಡುವುದಲ್ಲದೆ ತನ್ನ ಮನಸ್ಸಿಗೂ ಸಂತೋಷ ಕೊಡುತ್ತದೆ.
ಕವಿರರು ಹೇಳುವುದೇನೆಂದರೆ ಯಾರ ಹೃದಯ ಸತ್ಯ ನಿಷ್ಠೆಯನ್ನು ಕೂಡಿರುತ್ತವೆ ಓಡಿರುತ್ತದೆಯೋ ಅಂತವರ ಹೃದಯದಲ್ಲಿ ದೇವರು ನಡೆಸಿರುತ್ತಾರೆ. ಏಕೆಂದರೆ ಸತ್ಯಕ್ಕೆ ಸಮಾನವಾದ ಬೇರೊಂದು ತಪಸ್ ಇಲ್ಲ. ಹಾಗೆಯೇ ಸುಳ್ಳಿಗೆ ಸಮವಾದ ಮತ್ತೊಂದು ಪಾಪವಿಲ್ಲ ಎಂದು ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ.
ಕಬಿರರು ಇಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದೇನೆಂದರೆ ಖರ್ಜೂರದ ಮರ ಎತ್ತರವಾಗಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತದೆ. ಆದರೆ ಅದರಿಂದ ಪ್ರಯಾಣಿಕರಿಗೆ ಯಾದಕರಿಗೆ ನೆರಳು ಸಿಗುವುದಿಲ್ಲ ಹಾಗೆಯೇ ಅದು ಎಷ್ಟು ಹಣ್ಣು ಬಿಟ್ಟರು ಕೈ ಸಿಕ್ಕದೆ ತಿನ್ನಲಿಕ್ಕೆ ಸಿಗುವುದಿಲ್ಲ. ಇದರ ಭಾವಾರ್ಥ ಶ್ರೀಮಂತರು ಎಷ್ಟೇ ಹಣವನ್ನು ಕೂಡಿಟ್ಟು ಕೊಂಡಿದೆ ಇದ್ದರೆ ಅದರ ಪ್ರಯೋಜನವಾಗುವುದಿಲ್ಲ ಇಲ್ಲಿ ಜಿಪುಣ ಶ್ರೀಮಂತರನ್ನು ಖರ್ಜೂರದ ಮರಕ್ಕೆ ಹೊಳಿತ್ತಿದ್ದಾರೆ.
ಕವಿ ಪರಿಚಯ ಕಬೀರ್ ದಾಸ್ 1998 1918 ಕಬೀರ್ ದಾಸರು ಕಟ್ಟು ಮಾತಿನಿಂದ ಸಮಾಜದಲ್ಲಿನ ಕೆಟ್ಟ ಪದ್ಧತಿಗಳ ಬಗ್ಗೆ ವಿರೋಧಿಸುತ್ತಿದ್ದರು. ಇವರು ನೀರು ಮತ್ತು ನೀಮ ಎಂಬ ಮುಸಲ್ಮಾನ ನೇಕಾರರ ಮನೆಯಲ್ಲಿ ಬೆಳೆದರು ನೇರ ನುಡಿ ಮತ್ತು ನಿರ್ಭಯ. ಇವರ ಕಾವ್ಯದ ಪ್ರಮುಖ ಗುಣವಾಗಿದೆ. ಇವರು ಹುಟ್ಟಿನಿಂದಲೇ ಕ್ರಾಂತಿಕಾರಿ ಮನೋಭಾವ ಉಳ್ಳವರಾಗಿದ್ದರು. ಇವರ ನುಡಿಯಲ್ಲಿ ಸಮಾಜದ ಸುಧಾರಣೆಗಳ ಭಾವನೆಗಳು ತುಂಬಿದವು. ಇವರು ದಶಮಿಕ ಕವಿಯು ಆಗಿದ್ದರು. ಕಬಿರವರ ಕಾವ್ಯ ಬುದ್ಧಿ ಮತ್ತು ಹೃದಯದ ಸಮ್ಮೇಳನವಾಗಿದೆ ಇದಲ್ಲದೆ ಅವರು ಉನ್ನತಮಟ್ಟದ ಸ್ವಂತ ಕವಿ ಆಗಿದ್ದಾರೆ. ಜೀವನ ಮತ್ತು ನೀತಿಯ ಧರ್ಮಗುರು ಎಂಬ ಸಹ ಹೇಳಲಾಗುತ್ತದೆ. ಕಭಿರಾವರ "ಕಲಕಿಗಳು ಬೀಜಗ" ಎಂಬುವ ಹೆಸರಿನಲ್ಲಿ ಸಂಕಲನಗೊಂಡಿವೆ. ಇವರಲ್ಲಿ ಮೂರು ಭಾಗಗಳು ಇದೆ. ಸಾಹಸಬಾದ ರಾಮೈನ
ಕಬೀರ್ ಹೇಳುತ್ತಾರೆ. ಮನುಷ್ಯ ಯುಗ ಯುಗಗಳಿಂದ ಕೈಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುತ್ತಾ ಬಂದಿದ್ದಾನೆ. ಆದರೆ ಈ ರೀತಿ ಮಾಡಿದರು. ಸಹಮನ ಮಾಡಿಕೊಳ್ಳಲು ಅವನಿಂದ ಸಾಧ್ಯವಾಗಲಿಲ್ಲ. ಮನುಷ್ಯನು ಕೈಯಲ್ಲಿ ಹಿಡಿಯುವ ಜಪಮಾಲೆಯನ್ನು ಬಿಟ್ಟು ಹೃದಯಕ್ಕೆ ಸಮಾನವಾದ ಜಪಮಾಲೆಯನ್ನು ತಿರುಗಿಸಬೇಕು. ಅದರ ಅಂಶವೇನೆಂದರೆ ಮನುಷ್ಯ ಆಡಂಬರದ ಭಕ್ತಿ ಬಿಟ್ಟು ಹೃದಯದಿಂದ ಬಗವಂತನ ಜಪ ನಾಮಸ್ಕಾರಗಳು ನಾಮಸ್ಮರಣೆ ಮಾಡಬೇಕು.
ಕಬೀರ್ ಅವರು ಹೇಳುವುದೇನೆಂದರೆ ಒಳ್ಳೆಯ ಸಿಹಿಯಾದ ನುಡಿಗಳನ್ನು ಆಡಬೇಕು. ಈಗ ಒಳ್ಳೆಯ ನುಡಿ ಆಡಿದರೆ ಮನಸ್ಸಿನ ಅಹಂಕಾರ ದೂರವಾಗುತ್ತದೆ. ಈ ನುಡಿಗಳು ಬೇರೆಯವರ ಮನಸ್ಸಿಗೆ ಸಂತೋಷ ಕೊಡುವುದಲ್ಲದೆ ತನ್ನ ಮನಸ್ಸಿಗೂ ಸಂತೋಷ ಕೊಡುತ್ತದೆ.
ಕವಿರರು ಹೇಳುವುದೇನೆಂದರೆ ಯಾರ ಹೃದಯ ಸತ್ಯ ನಿಷ್ಠೆಯನ್ನು ಕೂಡಿರುತ್ತವೆ ಓಡಿರುತ್ತದೆಯೋ ಅಂತವರ ಹೃದಯದಲ್ಲಿ ದೇವರು ನಡೆಸಿರುತ್ತಾರೆ. ಏಕೆಂದರೆ ಸತ್ಯಕ್ಕೆ ಸಮಾನವಾದ ಬೇರೊಂದು ತಪಸ್ ಇಲ್ಲ. ಹಾಗೆಯೇ ಸುಳ್ಳಿಗೆ ಸಮವಾದ ಮತ್ತೊಂದು ಪಾಪವಿಲ್ಲ ಎಂದು ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ.
ಕಬಿರರು ಇಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದೇನೆಂದರೆ ಖರ್ಜೂರದ ಮರ ಎತ್ತರವಾಗಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತದೆ. ಆದರೆ ಅದರಿಂದ ಪ್ರಯಾಣಿಕರಿಗೆ ಯಾದಕರಿಗೆ ನೆರಳು ಸಿಗುವುದಿಲ್ಲ ಹಾಗೆಯೇ ಅದು ಎಷ್ಟು ಹಣ್ಣು ಬಿಟ್ಟರು ಕೈ ಸಿಕ್ಕದೆ ತಿನ್ನಲಿಕ್ಕೆ ಸಿಗುವುದಿಲ್ಲ. ಇದರ ಭಾವಾರ್ಥ ಶ್ರೀಮಂತರು ಎಷ್ಟೇ ಹಣವನ್ನು ಕೂಡಿಟ್ಟು ಕೊಂಡಿದೆ ಇದ್ದರೆ ಅದರ ಪ್ರಯೋಜನವಾಗುವುದಿಲ್ಲ ಇಲ್ಲಿ ಜಿಪುಣ ಶ್ರೀಮಂತರನ್ನು ಖರ್ಜೂರದ ಮರಕ್ಕೆ ಹೊಳಿತ್ತಿದ್ದಾರೆ.
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