ईमानदारों के सम्मेलन में
I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए:
1.प्रस्तुत कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर: प्रस्तुत कहानी के लेखक हरिशंकर परसाई हैं।
2.लेखक दूसरे दर्जे में क्यों सफर करना चाहते थे?
उत्तर: लेखक दूसरे दर्जे में इसलिए सफर करना चाहते थे कि दूसरे दर्जे में जाएँगे और पहले का किराया लेना चाहते थे।
3.लेखक की चप्पलें किसने पहनी थीं?
उत्तर: लेखक की चप्पलें एक ईमानदार डेलिगेट ने पहनी थीं।
4.स्वागत समिति के मंत्री किसको डाँटने लगे?
उत्तर: स्वागत समिति के मंत्री कार्यकर्ताओं को डाँटने लगे।
5.लेखक पहनने के कपडे कहाँ दबाकर सोये?
उत्तर: लेखक पहनने के कपडे सिरहाने दबाकर सोये।
6.सम्मेलन में लेखक के भाग लेने से किन-किन को प्रेरणा मिल सकती थी?
उत्तर: सम्मेलन में लेखक के भाग लेने से ईमानदारों तथा उदीयमान ईमानदारों को प्रेरणा मिल सकती थी।
7.लेखक को कहाँ ठहराया गया?
उत्तर: लेखक को एक बडे कमरे में ठहराया गया।
8.ब्रीफकेस में क्या था ?
उत्तर: ब्रीफकेस में कागजात थे।
9. लेखक ने धूप का चश्मा कहाँ रखा था?
उत्तर: लेखक ने धूप का चश्मा कमरे की टेबल पर रखा था।
10.तीसरे दिन लेखक के कमरे से क्या गायब हो गया था?
उत्तर:तीसरे दिन लेखक के कमरे से कम्बल गायब हो गया था।
II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए:
1.लेखक को भेजे गये निमंत्रण पत्र में क्या लिखा गया था ?
उत्तर:लेखक को भेजे गये निमंत्रण पत्र में यह लिखा गया था कि – हम लोग इस शहर में एक ईमानदार सम्मेलन कर रहे हैं। आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार हैं। हमारी प्रार्थना है कि आप इस सम्मेलन का उद्घाटन करें। हम आपको आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे तथा आवास, भोजन आदि की उत्तम व्यवस्था करेंगे। आपके आगमन से ईमानदारों तथा उदीयमान ईमानदारों को बडी प्रेरणा मिलेगी।
2.फूल मालाएँ मिलने पर लेखक क्या सोचने लगे ?
उत्तर:ईमानदारों के सम्मेलन के लिए जब लेखक रेलवे स्टेशन पहुंचे, उनका खूब स्वागत हुआ। लगभग दस बड़ी फूल-मालाएँ पहनायी गयीं। फूल-मालाएँ मिलने पर लेखक ने सोचा, आस-पास कोई माली होता तो फूल-मालाएँ भी बेच देता।
3. लेखक ने मंत्री को क्या समझाया ?
उत्तर: जब रोज चीजे गायब होने लगी तो सम्मेलन को आए प्रतिनिधियों ने हल्ला मचाया। स्वागत समिति के मंत्री ने आकर कार्यकर्ताओं को डाँटा और पुलिस को बुलाने की बात कही। तब लेखक ने मंत्री को समझाया कि ईमानदारों के सम्मेलन में पुलिस ईमानदारों की तलाशी ले, यह बड़ी अशोभनीय बात होगी। इतने बड़े सम्मेलन में थोड़ी गड़बड़ी तो होगी ही कहकर उनको रोक लिया।
4.चप्पलों की चोरी होने पर ईमानदार डेलीगेट ने क्या सुझाव दिया ?
उत्तर: सम्मेलन के उद्घाटन के बाद जब लेखक चप्पलें पहनने गया तो देखा की उनकी चप्पलें गायब थी। उनकी नयी और अच्छी चप्पलों की जगह एक जोड़ी फटी-पुरानी चप्पलें थी। एक ईमानदार डेलीगेट उनके कमरे में आया और लेखक को समझाने लगा की चप्पलें एक ही जगह नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि चोरी हो जाती है। एक ही जगह जोड़ी रहने से कोई पहनकर चला जाता है। इसलिए उसने लेखक को सुझाव दिया की दोनों चप्पलों को दस फीट दूरी में रखने से चोरी, नहीं होती।
5.लेखक ने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय क्यों लिया?
उत्तर: लेखक ईमानदारों के सम्मेलन में मुख्य अतिथि के नाते आये थे। उन्हें एक होटल के बड़े कमरे में ठहराया गया था। पहले-पहले उन्हें अपनी नई चप्पलें खोने का अनुभव हुआ। जिस डेलीगेट ने उनकी चप्पलें चुराई थी, वही महाशय लेखक को सुझाव देने लगे। कमरे से उनकी चादरें गायब थीं, उनका धूपवाला चश्मा गायब हुआ। किसी का ब्रीफकेस चला गया। इस प्रकार ईमानदार सम्मेलन में लेखक को अंतिम अनुभव यह हुआ कि जब कमरे का ताला ही चुरा लिया गया है, तो शायद खुद वह भी चुरा लिया जाएगा। इसलिए लेखक ने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय लिया।
6.मुख्य अतिथि की बेईमानी कहाँ दिखाई देती है ?
उत्तर: लेखक को ईमानदारों के सम्मेलन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया। आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देने की बात कही, तो लेखक ने मान लिया। लेकिन वह ईमानदारी के लिए नहीं गया। लेखक पहले दर्जे का किराया लेके दूसरे दर्जे में सफर करके पैसा बचाना चाहते थे। यहाँ उनकी बेईमानी दिखाई देती है।
III. चार-छः वाक्यों में उत्तर लिखिए:
1.लेखक के धूप का चश्मा खो जाने की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर: दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए धूप का चश्मा खोजने लगा, तो नहीं मिला जो शाम को तो था। जब लेखक इस बात को एक-दो लोगों से कहा, तो बात फैल गयी। लोगों ने सहानुभूति प्रकट की। एक सज्जन आकर लेखक का धूप का चश्मा चोरी होने के बारे में कहा उसने धूप का चश्मा पहना था। वह एक दिन पहले चश्मा नहीं लगाया था। लेखक को मालूम हो गया कि जो चश्मा उस सज्जन ने लगाया था वह लेखक का ही था। वह लेखक से कहने लगा कि आपने चश्मा लगाया नहीं था ? और उस सज्जन ने लेखक का चश्मा लगाये इतमिनान से बैठा था।
2. मंत्री तथा कार्यकर्ताओं के बीच में क्या वार्तालाप हुआ ?
उत्तर: मंत्री कार्यकर्ताओं को डाँटने लगे. कि – तुम लोग क्या करते हों ? तुम्हारी ड्यूटी यहाँ है। तुम्हारे रहते चोरियाँ हो रही हैं। यह ईमानदार सम्मेलन है। बाहर यह चोरी की बात फैलेगी तो कितनी बदनामी होगी। तब कार्यकर्ताओं ने कहा कि – हम क्या करें ? अगर सम्माननीय डेलीगेट यहाँ वहाँ जायें, तो क्या हम उन्हें रोक सकते हैं ? मंत्री ने गुस्से से कहा कि – मैं पुलिस को बुलाकर यहाँ तलाशी करवाता हूँ। तब एक कार्यकर्ता ने कहा कि – तलाशी किनकी करवायेंगे, आधे के लगभग डेलीगेट तो किराया लेकर दोपहर को ही वापस चले गये।
3. सम्मेलन में लेखक को कौन-से अनुभव हुए? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर: स्टेशन पर लेखक का खूब स्वागत हुआ। लगभग दस बडी फूल मालाएँ लेखक को पहनायीं गयी तो उसने सोचा कि आस-पास कोई माली होता तो फूल-मालाएँ भी बेच लेता। सम्मेलन में लेखक की नयी चप्पलें गायब थीं उसके बदले में फटी-पुरानी चप्पलें बची थीं। एक सज्जन ने ही लेखक की चप्पल पहना था। तो लेखक को मालूम हुआ और दूसरे दिन लेखक को धूप का चश्मा गायब हुआ था जिसे एक सज्जन ने लगाया था। और उसने उल्टा लेखक को ही समझा रहा था। लेखक को उस सज्जन ने चश्मा पहनकर इतमिनान से बैठे दिख रहा था। तीसरे दिन रात में उसे कंबल को खोजने लगा तो कंबल भी गायब था और सम्मेलन में सब ईमानदारी की बातें करते थे। पर सब बेईमान थे। अन्त में ताला भी गायब हुआ था। यह सब देखकर लेखक को लगा कि “अगर वे रूके तो वे भी चुरालिए जाऐंगे।” इस प्रकार लेखक को सम्मेलन में बहुत-से अनुभव हुए।
IV. अनुरूपता:
पहला दिन : चप्पलें गायब थीं :: दूसरे दिन : ——
तीसरे दिन : कम्बल गायब था :: चौथे दिन : ——-
रिक्शा : तीन पहियों का वाहन :: साइकिल : ——-
रेलगाडी : पटरी :: हवाईजहाज : ——–
उत्तर:
चादरे गायब थी।
ताला गायब था।
दोपहियों का वाहन
आसमान में उडता है।
V. रिक्त स्थान भरिए:
हम लोग इस शहर में एक ……….. सम्मेलन कर रहे हैं।
आपकी चप्पलें नहीं गयीं, यह ………….
वह मेरा चश्मा लगाये ………… से बैठे थे।
फिर इतने बड़े सम्मेलन में थोडी ………. होगी ही।
उत्तर:
ईमानदारों का
गनीमत
इतमीनान
गडबडी
VI. विलोम शब्द लिखिए :
आगमन
रात
जवाब
बेचना
सज्जन
उत्तर:
आगमन × निर्गमन
रात × दिन
चवाब। × सवाल
बेचना × खरीदना
सज्जन × दुर्जन
VII. बहुवचन रूप लिखिए:
कपडा
चादर
बात
डिब्बा
चीज
उत्तर:
कपडा x कपडे
चादर x चादरें
बात x बातें।
डिब्बा x डिब्बे
चीज x चीजें
VIII. प्रेरणार्थक क्रिया रूप लिखिए:
ठहरना – ठहराना – ठहरवाना
धोना – धुलाना – धुलवाना
देखना – दिखाना – खिवाना
लौटना – लौटाना – लौटवाना
उतरना – उतराना – उतरवाना
पहनना – पहनाना – पहनवाना
IX. संधि-विच्छेद करके संधि का नाम लिखिएः
स्वागत = सु + आगत = यण संधि
सहानुभूति = सह + अनुभूति = दीर्घ संधि
सज्जन – सज् + जन = व्यंजन संधि
परोपकार = पर + उपकार = गुण संधि
निश्चिंत = निः + चिंत विसर्ग संधि
सदैव = सदा + एव = वृद्धि संधि
X. कन्नड या अंग्रेजी में अनुवाद कीजिए :
1.हम आप को आने-जाने का पहले दर्जे का किराया देंगे।
उत्तर: ನಾವು ನಿಮಗೆ (ತಮಗೆ) ಬಂದು ಹೋಗುವ
ಪ್ರಥಮ ವರ್ಗದ ಬಾಡಿಗೆ ಕೊಡುತ್ತೇವೆ.
2.स्टेशन पर मेरा खूब स्वागत हुआ।
उत्तर: ಸ್ಟೇಶನ್ನಲ್ಲಿ ನನಗೆ ಬಹಳ ಸ್ವಾಗತವಾಯಿತು.
3.देखिए, चप्पलें एक जगह नहीं उतारना चाहिए।
उत्तर: ನೋಡಿರಿ. ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಒಂದು ಸ್ಥಳದಲ್ಲಿ
ತೆಗೆದಿಡಬಾರದು.
4.अब मैं बचा हूँ। अगर रूका तो मैं ही चुरा लिया जाऊँगा।
उत्तर: ಈಗ ನಾನು ಉಳಿದಿದ್ದೇನೆ. ಒಂದು ವೇಳೆ ನಿಂತರೆ
ನಾನೇ ಕಳೆದುಹೋಗುತ್ತೇನೆ.
XI. ईमान गुण के सामने सही चिन्ह (?) और बेईमान गुण के सामने गलत चिन्ह (✗) लगाइए:
1. दूसरे लोगों की वस्तुओं को वापिस पहुँचाना। ✓
2. चोरी करना। ✗
3. रास्ते में मिली वस्तुओं को पुलिस स्टेशन | पहुँचाना। ✓
4. कामचोरी करना। ✗
5. बगल में छुरी मुँह में राम-राम करना। ✗
6. झूठ बोलना। ✗
7. नेक मार्ग पर चलना।✓
8. जानबूझकर गलती करना। ✗
9. बहाना बनाना। ✗
10. सच बोलना। ✓
11. समय पर काम पूरा करना। ✓
12. धोखा देना। ✗
13. जालसाजी करना। ✗
14. चोर बाजारी और मिलावट करना। ✗
15. निष्ठा से कार्य करना। ✓
16. भ्रष्टाचार में शामिल होना। ✗
17. सेवाभाव से दूसरों की सहायता करना। ✓
18. देश के प्रति सच्चा अभिमान रखना। ✓
19. सच्चे भाव से बडों का आदर करना। ✓
20. अपने सहपाठियों के साथ भाईचारे का व्यवहार करना। ✓
XII. चित्र देखकर कहानी रचिए, और उसके लिए एक उचित शीर्षक दीजिए :
1. मेरे पास चप्पल नहीं थी। (वर्तमानकाल में)
उत्तर: मेरे पास चप्पल नहीं है।
2. एक बिस्तर की चादर गायब है। (भूतकाल में)
उत्तर: एक विस्तर की चादर गायब थी।
3. उसमें पैसे तो नहीं थे। (भविष्यत्काल में)
उत्तर: उसमें पैसे नहीं होंगे।
4. कोई उठा ले गया होगा। (वर्तमानकाल में)
उत्तर: कोई उठा ले जा रहा है।
5.वह धूप का चश्मा लगाये थे। (भविष्यत्काल में)
उत्तर: वह धूप का चश्मा लगाएँगे।
6. सुबह मुझे लौटना था। (भविष्यत्काल में)
उत्तर; सुबह मुझे लौटना होगा।
II. निम्नलिखित वाक्यों के आगे काल पहचानकर लिखिए :
1.मैंने सामान बाँधा। ……..
2.बडी चोरियाँ हो रही हैं। …….
3.पहले दर्जे का किराया लँगा। ………..
4.डेलीगेट दोपहर को ही वापस चले गये। ………..
5.मेरी चप्पलें देख रहे थे। ………..
उत्तर:
1.भूतकाल
2.वर्तमानकाल
3.भविष्यतकाल
4.भूतकाल
5.भूतकाल
III. इन कहावतों का अर्थ समझकर वाक्य में प्रयोग कीजिए:
1.जैसे : कहावत – जहाँ चाह वहाँ राह।।
अर्थ – इच्छा होने पर उसे पाने का मार्ग स्वयं मिल जाता है।
वाक्य – यदि मनुष्य चाहे तो कठिन से कठिन कार्य से भी पूरा कर सकता है, क्योंकि जहाँ चाह वहाँ राहा
2.गुरु गुड ही रहे, चेले शक्कर हो गये।
अर्थ – गुरु से भी आगे निकलना
वाक्य – विवेक ने अपने गुरु से प्रशिक्षण लिया और उसे पुरस्कृत किया गया। ये तो वही बात होगई, जैसे गुरु गुडही रहे, चेले शक्कर हो गए।
3.जैसा देश, वैसा भेस।
अर्थ – जगह के अनुसार रह्ना
वाक्य – जब हम किसी के ‘ जाते है, तो उनके जैसे रहना पड़ता है। जैसे जैसा देश वैसा भेस।
4.निर्वल के बलराम।।
अर्थ- बलहीनों का सहारा भगवान होते हैं।
वाक्य – रामू स्वभाव से बहुत भोला । इसलिए लोग उसका फायदा उठाते थे, मगर उसे विश्वास था कि निर्बल के भगवान होते है।
5.बट; व्या । अदरक का स्राद!
अर्थ – मूर्ख व्यक्ति के हाथ में मूल्यवान चीज लगना
वाक्य – पाश्चात्य संगीत की धुन पर थिरकने वाले युवाओं को सामने शास्त्रीय संगीत का कोई महत्व नहीं है। उनके लिए यह कहावत सत्य प्रतीत होती है । कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
6.हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और।
अर्थ – बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और।
वाक्य – मोहन का व्यवहार घर में अलग और पाठशाला में हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और।
ईमानदारों के सम्मेलन में
ईमानदारों के सम्मेलन में लेखक परिचय :
कलम को लेखक की तलवार माननेवाले श्री हरिशंकर परसाई हिन्दी साहित्य जगत् की एक बेजोड़ निधि हैं। इनका जन्म मध्य प्रदेश के जमानी गाँव में 22 अगस्त 1924 को हुआ था। इनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘वैष्णव का फिसलन’ आदि। हिन्दी के व्यंग्य साहित्य के विकास में इनका योगदान अद्वितीय है।
पाठ का सारांश :
लेखक अपने को ईमानदार नहीं मानते, परन्तु लोग उन्हें ईमानदार मानने लगे। लेखक को पत्र मिला – “आप देश के प्रसिद्ध ईमानदार है। हम एक ईमानदार सम्मेलन करने जा रहे हैं। अतः आप इस सम्मेलन का उद्घाटन करें। आपको आने-जाने का किराया दिया जाएगा, आवास-व्यवस्था होगी। आपके आने से उदीयमान ईमानदारों को प्रेरणा मिलेगी।’ आखिर लेखक गया, इसलिए नहीं कि वह ईमानदार है, उसे कुछ लेना-देना नहीं था। पर उन लोगों ने उसे राष्ट्रीय स्तर का ईमानदार माना ही क्यों?’खैर!
स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत किया गया। उन्हें एक शानदार होटल में ठहराया गया, जहाँ और भी कई लोग थे। लेखक ने अपने कमरे को ताला नहीं लगाया। उद्घाटन शानदार हुआ। लेखक ने करीब एक घंटे तक भाषण दिया।
लोग जाने लगे। लेखक से लोग बातें करने लगे। जब वह चप्पल पहनने गया तो उनकी चप्पलें गायब थीं। बदले में फटी-पुरानी चप्पलें पहनकर आया। उन्हीं के कमरे में जो डेलीगेट थे, उन्होंने ही उनकी नई चप्पलें पहन रखी थीं। वे लेखक को समझाने लगे कि चप्पलें एक ही जगह नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि चोरी हो जाती है। एक ही जगह जोड़ी रहेगी तो कोई पहनकर चला जाता है। लेखक ने उनसे कहा – “अच्छा है कि आपकी चप्पलें नहीं गईं।”
फिर लेखक ने देखा कि बिस्तर की चद्दर गायब है। दूसरे दिन गोष्ठियों से लौटा, तो दो और चद्दरें नहीं थीं। दूसरे दिन बैठक में जाने के लिए धूप का चश्मा ढूँढा, तो नहीं मिला। बात फैल गई। इसी समरा बगल वाले कमरे से आवाज आई, “मेरा ब्रीफकेस कहाँ चला गया?” बैठक में पन्द्रह मिनट चाय की छुट्टी थी। लोग कहने लगे – “बड़ी चोरियाँ हो रही हैं। आपका धूप का चश्मा ही चला गया। वह खुद धूप का चश्मा लगाए हुए थे, जो लेखक का ही था। वह बड़े ही इतमीनान से बैठे थे।
तीसरे दिन कुछ ठंड थी, लेखक ने सोचा कि कम्बल ओढ़ लूँ, पर कम्बल भी गायब था। फिर हल्ला हुआ। स्वागत समिति के मंत्री आये। मंत्री कार्यकर्ता को डाँटने लगे – “कितनी चोरियाँ हो रही है? यह ईमानदारों का सम्मेलन है। बात बाहर जाएगी, तो कितनी बदनामी होगी?” कार्यकर्ता ने कहा – “हम क्या करें, डेलिगेट इधर-उधर जाये, तो क्या हम उन्हें रोकें?” मंत्री ने कहा – “पुलिस को बुलाकर सबकी तलाशी ली जाएगी।”
लेखक ने समझाया – “ऐसा मत कीजिए। ईमानदारों के सम्मेलन में पुलिस ईमानदारों की तलाशी ले, यह अशोभनीय बात होगी।’ एक कार्यकर्ता ने कहा – “तलाशी किनकी लेंगे? आधे डेलीगेट तो किराया लेकर वापस चले गये हैं।” रात को पहनने के कपड़े लेखक सिरहाने दबाकर सोया। नयी चप्पलें और शेविंग का डिब्बा बिस्तर के नीचे दबाया। सुबह निकलना था। उन्होंने सामान बाँधा। मंत्री ने कहा – “परसाई जी, स्वागत समिति के साथ अच्छे होटल में भोजन करेंगे। अब ताला लगा देते है। पर ताला भी चुरा लिया गया था।
लेखक ने कहा – “रिक्शा बुलवाइये। मैं सीधा स्टेशन जाऊँगा। यहाँ नहीं रुकूँगा।” मंत्री हैरानी से बोले – “ऐसी भी क्या नाराजगी है?” लेखक ने कहा – “नाराजगी कतई नहीं है। बात यह है कि ताला तक चुरा लिया गया है। अब यदि मैं रुका तो मैं ही चुरा लिया जाऊँगा।”
ಪ್ರಾಮಾಣಿಕನೆಂದು ಕರೆಯಿಸಿಕೊಳ್ಳಲು ನಾನು ಎಂದಿಗೂ ಏನನ್ನು ಮಾಡಿಲ್ಲ, ಅವರಿಗೆ ನಾನು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕನೆಂದು ಹೇಗೆ ಭ್ರಮೆ ಉಂಟಾಯಿತೋ ಗೊತ್ತಿಲ್ಲ, "ನಾವು ಈ ನಗರದಲ್ಲಿ ಒಂದು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರ ಸಮ್ಮೇಳನವನ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದೇವೆ. ತಾವು ದೇಶದ ಪ್ರಸಿದ್ಧ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರೆಂದು ಹೆಸರಾಗಿದ್ದೀರಿ. ತಾವು ಈ ಸಮ್ಮೇಳನದ ಉದ್ಘಾಟನೆಯನ್ನು ಮಾಡಬೇಕೆಂದು ನಮ್ಮ ಪ್ರಾರ್ಥನೆಯಾಗಿದೆ. ನಾವು ನಿಮಗೆ ಹೋಗು ಬರುವ ಪ್ರಥಮ ದರ್ಜೆಯ ಹಣವನ್ನು ಕೊಡುವೆವು ಹಾಗೂ ವಸತಿ ಹಾಗೂ ಭೋಜನ ಮುಂತಾದವುಗಳ ಉತ್ತಮವಾದ ವ್ಯವಸ್ಥೆಯನ್ನು ಮಾಡುತ್ತೇವೆ. ತಮ್ಮ ಆಗಮನದಿಂದ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರ ಹಾಗೂ ಮುಂದೆ ನಿರ್ಮಾಣವಾಗುವ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರಿಗೆ ದೊಡ್ಡ ಪ್ರೇರಣೆ ಸಿಗುತ್ತದೆ" ಎಂದು ನನಗೆ ಒಂದು ಪತ್ರ ಬಂದಿತು. ನಾನು ಹೋದೆನು. ಪ್ರಾಮಾಣಿಕತೆಯಿಂದ ನನಗೇನು ಆಗುವುದಿಲ್ಲ, ನಾನು ಎರಡನೆಯ ದರ್ಜೆಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಯಾಣಿಸಿದ್ದರೆ ಮೊದಲನೆಯ ದರ್ಜೆಯ ಅಣ್ಣ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಬೇಕೆಂದು ಲೆಕ್ಕಹಾಕಿ ಹೋದೆನು. ಇದರಿಂದ ನೂರಾ ಐವತ್ತು ರೂಪಾಯಿಗಳು ಉಳಿಯುತ್ತವೆ. ಆದರೆ ಆ ಜನರು ನನ್ನನ್ನು ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಮಟ್ಟದ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕ ಎಂದು ಏಕೆ ತಿಳಿದರೋ ?
ಸ್ಟೇಷನ್ನಿನಲ್ಲಿ ನನಗೆ ಅತ್ಯಂತ ಸ್ವಾಗತ ಸಿಕ್ಕಿತು. ಸುಮಾರು ಹತ್ತು ದೊಡ್ಡ ಹೂವಿನ ಹಾರಗಳನ್ನು ಹಾಕಿದರು. ಅಕ್ಕ ಪಕ್ಕ ದಲ್ಲಿ ಒಂದು ವೇಳೆ ತೋಟಿಗನು ಇದ್ದರೆ ಹೂವಿನ ಹಾರಗಳನ್ನು ಸಹ ಮಾರುತಿದ್ದೇನೆ.
ಹೋಟೆಲ್ ನ ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಕೋಣೆಯಲ್ಲಿ ನನ್ನನ್ನು ಇಳಿಸಲಾಯಿತು. ನನ್ನ ಕೋಣೆಯ ಎಡಗಡೆಗೆ ಮತ್ತು ಎದುರಿಗೆ ಎರಡು ಹಾಲ್ಗಳಿದ್ದವು. ಅವುಗಳಲ್ಲಿ ಸುಮಾರು 30 ರಿಂದ 35 ಪ್ರತಿನಿಧಿಗಳಿದ್ದರೂ. ನನ್ನ ಇಬ್ಬರು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕ ಸಂಘಟನೆಗಳು ಸಹ ನನ್ನದೇ ಕೋಣೆಯಲ್ಲಿ ಬಂದರು. ಕೋಣೆಗೆ ಬೀಗ ಹಾಕಿದ್ದಾರೆ ಇವರಿಗೆ ತೊಂದರೆ ಆಗುವುದಿಲ್ಲ. ಉದ್ಘಾಟನೆ ವೈಭವದಿಂದ ಜರುಗಿತು. ನಾನು ಸುಮಾರು ಒಂದು ಗಂಟೆಯವರೆಗೆ ಭಾಷಣ ಮಾಡಿದೆನು.
ಜನರು ಹೋಗಿ ಬಿಟ್ಟಿದ್ದರು. ನಾನು ಮುಖ್ಯ ಅತಿಥಿಯಾಗಿದ್ದೇನೆ. ಜನರು ನನ್ನೊಂದಿಗೆ ಮಾತನಾಡುತ್ತಿದ್ದರು. ನಾನು ಹೋಗುವಾಗ ಚಪ್ಪಲಿ ಹಾಕಿಕೊಳ್ಳಲು ಹೋದೆನು. ನೋಡಿದರೆ ನನ್ನ ಚಪ್ಪಲಿ ಮಾಯವಾಗಿದ್ದವು. ಹೊಸ ಮತ್ತು ಒಳ್ಳೆಯ ಚಪ್ಪಲಿಗಳ ಜಾಗದಲ್ಲಿ ಈಗ ಒಂದು ಜೊತೆ ಹರಿದ ಹಳೆಯ ಚಪ್ಪಲಿಗಳು ಇದ್ದವು. ನಾನು ಅವುಗಳನ್ನೇ ಹಾಕಿಕೊಂಡೆ. ನನ್ನ ಹೊಸ ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಯಾರು ಹಾಕಿಕೊಂಡ ವಿಷಯ ಹರಡಿತು.
ಒಬ್ಬ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕ ಸದಸ್ಯವನ್ನು ನನ್ನ ಕೋಣೆಗೆ ಬಂದನು. ಏನು ನಿಮ್ಮ ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಯಾರೋ ಹಾಕಿಕೊಂಡರೆ? ಎಂದು ಆತನು ಕೇಳಿದನು. ಹೌದು, ಇಷ್ಟು ದೊಡ್ಡ ಉತ್ಸವದಲ್ಲಿ ಚಪ್ಪಲಿಗಳು ಆಗಲಿ ಬದಲಿ ಆಗಿಯೇ ಆಗುತ್ತದೆ ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆ. ಪುನಃ ನಾನು ಧ್ಯಾನದಿಂದ ನೋಡಿದಾಗ ಅವರ ಕಾಲುಗಳಲ್ಲಿ ನನ್ನದೇ ಚಪ್ಪಲಿಗಳಿದ್ದವು. ಆತನು ನನ್ನ ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ನೋಡುತ್ತಿದ್ದನು. ಅವುಗಳು ಬಹುಶಃ ಆತನ ಚಪ್ಪಲಿಗಳೇ ಆಗಿದ್ದವು.
ಆದರೆ ಆತನು ಸಂಕೋಚವಿಲ್ಲದೆ ನೋಡಿ, ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಒಂದೇ ಸ್ಥಳದಲ್ಲಿ ಇಡಬಾರದು. ಒಂದು ಚಪ್ಪಲಿಯನ್ನು ಇಲ್ಲಿ ತೆಗೆದರೆ ಇನ್ನೊಂದನ್ನು ಅತ್ತು ಊಟ ದೂರದಲ್ಲಿ ತೆಗೆದಿರಿಸಬೇಕು. ಆಗ ಚಪ್ಪಲಿಗಳು ಮಾಯವಾಗುವುದಿಲ್ಲ. ಒಂದೇ ಸ್ಥಳದಲ್ಲಿ ಜೋಡಿ ಇದ್ದರೆ ಯಾರಾದರೂ ಹಾಕಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ. ನಾನು ಹೀಗೆ ಮಾಡಿದೆ ಎಂದು ಹೇಳತೊಡಗಿದನು.
ಆತನು ನನ್ನ ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನೇ ಧರಿಸಿ ನನಗೆ ತಿಳಿಸುತ್ತಿದ್ದಾನೆ. ' ಅವಶ್ಯಕತೆ ಇಲ್ಲ. ಮುಂಜಾನೆ ಬೇರೆ ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಖರೀದಿಸುವೆನು. ತಮ್ಮ ಚಪ್ಪಲಿಗಳಂತೂ ಹೋಗಲಿಲ್ಲವಲ್ಲ. ಇದೇ ಸಂತಸದ ವಿಷಯ ' ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆನು.
ಪುನಃ ಒಂದು ಹಾಸಿಗೆ ಚಾದರ ಮಾಯವಾಗಿದ್ದನ್ನು ನಾನು ನೋಡಿದೆನು. ನಾನು ಆಯೋಜನಕಾರರಿಗೆ ಹೇಳಿದಾಗ, ನವರು ಸ್ವಚ್ಛಗೊಳಿಸಲು ಕಳುಹಿಸಿರಬಹುದು. ಬೇರೆಯದು ತರುತ್ತಾರೆ ಎಂದು ಅವರು ಹೇಳಿದರು. ಆದರೆ ಬೇರೆ ಚಾದರ ಬರಲಿಲ್ಲ.
ಮರುದಿನ ಗೋಷ್ಠಿಗಳು ಪ್ರಾರಂಭವಾದವು. ರಾತ್ರಿಗೋಷ್ಠಿಗಳ ನಂತರ ಮರಳಿ ಬಂದೆನು. ನೋಡಿದಾಗ ಮತ್ತೆ ಎರಡು ಚಾದರಗಳು ಮಾಯವಾಗಿದ್ದವು. ಮೂರು ಹೋದವು.
ಎರಡನೆಯ ದಿನ ಸಭೆಗೆ ಹೋಗಲು ತಂಪು ಕನ್ನಡಕವನ್ನು ಹುಡುಕಲಾರಂಭಿಸಿದೆನು. ಆಗ ಸಿಗಲಿಲ್ಲ. ಸಂಜೆ ಇತ್ತು. ನಾನು ಒಂದಿಬ್ಬರಿಗೆ ಹೇಳಿದ ಆಗ ವಿಷಯ ಹಬ್ಬಿತು.
ಇದೇ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಪಕ್ಕದ ಕೋಣೆಯಲ್ಲಿ ಗದ್ದಲ ಉಂಟಾಯಿತು. ಹರೇ! ನನ್ನ ಪ್ರಿಪಕೇಸ್ ಎಲ್ಲಿ ಹೋಯಿತು? ಇಲ್ಲೇ ಇಟ್ಟಿದೇನು.
ಅದರಲ್ಲಿ ಹಣ ಇರಲಿಲ್ಲವಷ್ಟೇ ? ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆನು. ಹಣವಂತೂ ಇರಲಿಲ್ಲ. ಕಾಗದ ಪತ್ರಗಳಿದ್ದವು ಎಂಬ ಉತ್ತರ ಸಿಕ್ಕಿತು. " ಹಾಗಾದರೆ ಸಿಗುತ್ತದೆ" ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆನು.
ನಾನು ತಂಪು ಕನ್ನಡಕ ಹಾಕಿಕೊಳ್ಳದೆ ಸಭೆಗೆ ಮುಟ್ಟಿದೆ. ಸಭೆಯಲ್ಲಿ 15 ನಿಮಿಷ ಚಹಾದ ಬಿಡುವು ಆಯಿತು. ಜನರು ಸಹಾನುಭೂತಿಯನ್ನು ವ್ಯಕ್ತಪಡಿಸಿದರು. ಒಬ್ಬ ಸಜ್ಜನರು ಬಂದರು. " ಬಹಳ ಕಳ್ಳತನವಾಗುತ್ತಿವೆ. ನೋಡಿರಿ, ನಿಮ್ಮ ತಂಪು ಕನ್ನಡಕವೇ ಹೋಗಿ ಬಿಟ್ಟಿತು" ಎಂದು ಅವರು ಹೇಳಿದರು. ಅವರು ತಂಪು ಕನ್ನಡಕವನ್ನು ಹಾಕಿದರು. ನನಗೆ ನೆನಪಿತ್ತು. ಒಂದು ದಿನ ಮುಂಚೆ ಅವರು ತಂಪು ಕನ್ನಡಕವನ್ನು ಹಾಕಿದ್ದಿಲ್ಲ. ಅವರು ಹಾಕಿದ್ದ ಕನ್ನಡಕ ನನ್ನದೇ ಆಗಿತ್ತು. ಅದನ್ನು ನಾನು ನೋಡಿದೆನು.
ತಾವು ಕನ್ನಡಕ ಹಾಕಿದ್ದಿಲ್ಲವೇ? ಎಂದು ಅವರು ಹೇಳಿದರು. ರಾತ್ರಿಯ ಬೆಳದಿಂಗಳದಲ್ಲಿ ತಂಪು ಕನ್ನಡಕವನ್ನು ಹಾಕಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ? ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆನು. ನಾನು ಕೋಣೆಯ ಟೇಬಲ್ನ ಮೇಲೆ ಇಟ್ಟಿದ್ದೆ ಎಂದು ಹೇಳಿದೆನು.
" ಯಾರಾದರೂ ಎತ್ತಿಕೊಂಡು ಹೋಗಿರಬಹುದು" ಎಂದು ಅವರು ಹೇಳಿದರು.
ನನ್ನ ಕನ್ನಡಕವನ್ನು ಅವರು ಆರಾಮವಾಗಿ ಹಾಕಿ ಕುಳಿತಿರುವುದನ್ನು ನಾನು ನೋಡುತ್ತಿದ್ದೇನೆ .
ಮೂರನೆಯ ದಿನ ರಾತ್ರಿ ಮರಳಿದಾಗ ಸ್ವಲ್ಪ ಜ್ವರ ಬಂದಿದ್ದು ಮತ್ತು ಸ್ವಲ್ಪ ಚಳಿಯೂ ಇತ್ತು. ಹಾಸಿಗೆಯಿಂದ ಕಂಬಳಿಯನ್ನು ತೆಗೆಯಲು ಹೋದಾಗ ಅದು ಮಾಯವಾಗಿತ್ತು.
ಪುನಹ ಗದ್ದಲ ಉಂಟಾಯಿತು. ಸ್ವಾಗತ ಸಮಿತಿಯ ಮಂತ್ರಿಗಳು ಬಂದರು ಎಷ್ಟೋ ಕಾರ್ಯಕರ್ತರು ಬಂದರು. " ನೀವೆಲ್ಲ ಏನು ಮಾಡುತ್ತೀರಿ? ನಿಮ್ಮ ಕಾರ್ಯ ಇಲ್ಲಿದೆ. ನೀವು ಇದ್ದರೂ ಕಳ್ಳತನವಾಗುತ್ತಿವೆ. ಇದು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರ ಸಮ್ಮೇಳನ ವಾಗಿದೆ. ಹೊರಗೆ ಈ ಕಳ್ಳತನದ ವಿಷಯ ಅಬ್ಬಿದರೆ ಎಷ್ಟು ಕೆಟ್ಟ ಹೆಸರು ಆಗುತ್ತದೆ? "ಎಂದು ಮಂತ್ರಿಗಳು ಕಾರ್ಯಕರ್ತರಿಗೆ ಭಯ್ಯ ತೊಡಗಿದರು.
ನಾನೇನು ಮಾಡಬೇಕು ? ಮನ ಪೂರ್ಣ ಡೆಲಿಕೇಟ್ಸ್ ಎಲ್ಲಿ ಅಲ್ಲಿ ಹೋದರೆ ನಾವೇನು ಅವರನ್ನು ತಡೆಯಲು ಸಾಧ್ಯವೇ? ಎಂದು ಕಾರ್ಯಕರ್ತರು ಹೇಳಿದರು.
ಮಂತ್ರಿಗಳು ಸಿಟ್ಟಿನಿಂದ 'ನಾನು ಪೊಲೀಸರನ್ನು ಕರೆಸಿ ಎಲ್ಲರ ಶೋಧನೆ ಮಾಡಿಸುವೆ' ಎಂದು ಹೇಳಿದರು.
' ಹೀಗೆ ಎಂದಿಗೂ ಮಾಡಬೇಡಿರಿ. ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರ ಸಮ್ಮೇಳನದಲ್ಲಿ ಪೊಲೀಸರು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕರನ್ನು ಶೋಧಿಸಿದರೆ ಇದು ಅತ್ಯಂತ ದೊಡ್ಡ ಅಪಮಾನವಾಗುತ್ತದೆ. ಇದು ಶೋಭಿಸುವುದಿಲ್ಲ. ಮತ್ತೆ ಇಂತಹ ದೊಡ್ಡ ಸಮ್ಮೇಳನದಲ್ಲಿ ಸ್ವಲ್ಪ ಗಡಿಬಿಡಿ ಆಗಿಯೇ ಆಗುತ್ತದೆ.' ಎಂದು ತಿಳಿಸಿ ಹೇಳಿದೆನು.
'ಯಾರನ್ನು ಶೋಧಿಸುವಿರಿ? ಅರ್ಧದಷ್ಟು ಡೆಲ್ಲಿ ಗೇಟ್ ಗಳು ಅಣ್ಣ ಪಡೆದು ಮಧ್ಯಾಹ್ನವೇ ಹೊರತು ಹೋದರು' ಎಂದು ಒಬ್ಬ ಕಾರ್ಯಕರ್ತರು ಹೇಳಿದನು.
ಧರಿಸುವ ಬಟ್ಟೆಗಳನ್ನು ರಾತ್ರಿ ತಲೆ ದಿಂಬಿನ ಕೆಳಗೆ ಇಟ್ಟುಕೊಂಡು ಮಲಗಿದೆನು, ಹೊಸ ಚಪ್ಪಲಿಗಳನ್ನು ಮತ್ತು ಶೇವಿಂಗ್ ಡಬ್ಬಿಯನ್ನು ಹಾಸಿಗೆಯ ಕೆಳಗೆ ಇಟ್ಟೇನು.
ಮುಂಜಾನೆ ನಾನು ಮರಳಿ ಹೋಗಬೇಕಿತ್ತು. ನನಗೆ ಆ ಜನರು ಯೋಗ್ಯ ಹಣವನ್ನು ಕೊಟ್ಟರು. ನಾನು ಸಾಮಾನುಗಳನ್ನು ಪ್ಯಾಕ್ ಮಾಡಿದೆನು.
" ಪರಸಾಯಿ ಅವರೇ ಗಾಡಿ ಬರಲು ತಡವಾಗುತ್ತದೆ. ನಡೆಯಿರಿ. ಸ್ವಾಗತ ಸಮಿತಿಯೊಂದಿಗೆ ಒಳ್ಳೆಯ ಹೋಟೆಲಿನಲ್ಲಿ ಭೋಜನವಾಗಲಿ, ಈಗ ಬೀಗ ಹಾಕುತ್ತೇವೆ" ಎಂದು ಮಂತ್ರಿಗಳು ಹೇಳಿದರು.
ಆದರೆ ಬೀಗವು ಮಾಯವಾಗಿತ್ತು, ಬೇಗವನ್ನು ಕಳುವು ಮಾಡಿದರು. " ರಿಕ್ಷಾ ತರಿಸಿರಿ, ನಾನು ಸೀದಾ ಸ್ಟೇಷನ್ಗೆ ಹೋಗುವೆನು. ಇಲ್ಲಿ ನಿಲ್ಲುವುದಿಲ್ಲ " ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆನು. ಮಂತ್ರಿಗಳು ಚಕಿತರಾಗಿದ್ದರು. ಈಗೇಕೆ ಸಿಟ್ಟು? ಎಂದು ಹೇಳಿದರು.
" ಸಿಟ್ಟು ಎಂದಿಗೂ ಇಲ್ಲ ವಿಷಯವೇನೆಂದರೆ, ವಸ್ತುಗಳಂತೂ ಎಲ್ಲವೂ ಕಳ್ಳತನವಾದವು. ಕಳ್ಳತನದಲ್ಲಿ ಬೀಗವು ಹೊರಟು ಹೋಯಿತು. ಈಗ ನಾನು ಉಳಿದಿದ್ದೇನೆ. ಒಂದು ವೇಳೆ ನಾನು ಇಲ್ಲಿ ನಿಂತರೆ ನಾನು ಕಳತನವಾಗಬಹುದು " ಎಂದು ನಾನು ಹೇಳಿದೆನು.
0 Comments