व्याकरण
I. प्रथम प्रेरणार्थक रूप लिखना:
1. कवि – कवयित्री
2. पढ़ना – पढ़ाना
3. करना – कराना
4. चलना – चलाना
5. समझना – समझाना
6. पकड़ना – पकड़ाना
7. करना – कराना
8. बनना – बनाना
9. लेखक – लेखिका
10. लिखना – लिखाना
11. उठना – उठाना
12. सुनना – सुनाना
13. देना – दिलाना
14. बैठना – बिठाना
15. चलना – चलाना
16. उठना – उठाना
II. प्रेरणार्थक क्रिया रूप लिखना:
क्रिया प्रथम प्रेरणार्थक द्वितीय प्रेरणार्थक
1. चिपकना – चिपकाना – चिपकवाना
2. लिखना – लिखाना – लिखवाना
3. मिलना – मिलाना – मिलवाना
4. देखना – दिखाना – दिखवाना
5. छेड़ना – छिडाना – छिडवाना
6. भेजना – भेजाना – भिजवाना
7. सोना – सुलाना – सुलवाना
8. रोना – रुलाना – रुलवाना
9. धोना – धुलाना – धुलवाना
10. पीना – पिलाना – पिलवाना
11. सीना – सिलाना – सिलवाना
12. ठहरना – ठहराना – ठहरवाना
13. धोना – धुलाना – धुलवाना
14. देखना – दिखाना – दिखवाना
15. उतरना – उतराना – उतरवाना
16. पहनना – पहनाना – पहनवाना
17. चलना – चलाना – चलवाना
18. ठहरना – ठहराना – ठहरवाना
19. बोलना – बुलाना – बुलवाना
20. हँसना – हँसाना – हँसवाना
21. लड़ना – लडाना – लडवाना
22. दौडना – दौडाना – दौडवाना
23. काटना – कटाना – कटवाना
24. सीखना – सिखाना – सिखवाना
व्याकरण संधि
• संधि शब्द का अर्थ है – मेल।
• दो वर्षों या अक्षरों के मेल से होनेवाले विकार को संधि कहते हैं।
• जब दो वर्ण आपस में जुड़ते हैं तो एक नया रूप ग्रहण करते हैं, वर्ण-मेल की इस प्रक्रिया को संधि कहा जाता है।
उदाहरण —
शिव + आलय = शिवालय (अ+आ = आ)
धर्म + अधिकारी = धर्माधिकारी (अ+अ= आ)
• संधि के निम्नलिखित तीन भेद हैं*
1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि
1. स्वर संधि:
जब दो स्वर आपस में मिलकर एक नया रूप धारण करते हैं, तब उसे स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि के निम्नलिखित पाँच भेद हैं
• दीर्घ संधि
• गुण संधि
• वृद्धि संधि
• यण संधि
• अयादि संधि
• दीर्घ संधि- दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि अ, आ, इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद वे ही ह्रस्व या दीर्घ स्वर आयें, तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ और ऋ हो जाते हैं।
उदाहरण–
1. अ + अ = आ
समान + अधिकार = समानाधिकार
अ + आ = आ
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा.
आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय
2. इ + इ = ई
कवि + इंद्र = कवींद्र
इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
मही + इन्द्र = महीन्द्र
ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश
3. उ + उ = ऊ
लघु + उत्तर = लघूत्तर
उ + ऊ = ऊ
सिंधु + ऊर्जा = सिंधूर्जा
ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊर्जा = भूर्जा
4. ऋ + ऋ = ऋ
पितृ + ऋण = पितृण
• गुण संधि– यदि अ या आ के बाद इ या ई, उ या ऊ और ऋ आये तो दोनों मिलकर
क्रमशः ए, ओ और अर हो जाते हैं।
उदाहरणक —
1. अ + इ = ए
गज + इंद्र = गजेंद्र
अ + ई = ए
परम + ईश्वर = परमेश्वर
आ + इ = ए
महा + इंद्र = महेंद्र
आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश
2. अ + उ = ओ
वार्षिक + उत्सव = वार्षिकोत्सव
आ + ऊ = ओ
जल + उर्मि = जलोर्मि
आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ = ओ
महा + ऊर्मि = महोर्मि
3. अ + ऋ = अर
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ = अर।
महा + ऋषि = महर्षि
• वृद्धि संधि: यदि अ या आ के बाद ए या ऐ आये तो दोनों के स्थान में ऐ तथा अ या आ के बाद ओ या औ आये तो दोनों के स्थान में औ हो जाता है।
उदाहरण —
1. अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक
अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य
आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
2. अ + ओ = औ
परम + ओज = परमौज
अ + औ = औ
वन + औषध = वनौषध
आ + ओ = औ
महा + ओजस्वी = महौजस्वी
आ + औ = औ
महा + औषधि = महौषधि
• यण संधियदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो इ-ई का य्, उ ऊ का व् और ऋ का र हो जाता है।
उदाहरण —
इ + अ = ये
अति + अधिक = अत्यधिक
इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
इ + उ = यु
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
उ + अ = वे
मनु + अन्तर = मन्वंतर
उ + आ = व
सु + आगत = स्वागत
ऋ + अ = र
पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
ऋ + आ = र
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
ऋ + उ = र
पितृ + उपदेश = पितृपदेश
• अयादि संधि – यदि ए. ऐ और ओ. औ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ए का अय् ऐ का आय, ओ का आवू और औ का आव हो जाता है।
उदाहरण —
1. ए + अ = अय चे + अन = चयन
ए + अ = अय ने + अन = नयन
2. ऐ + अ = आय गै + अक = गायक
ऐ + ई = आय नै + इका = नायिका
3. ओ + अ = अव भो + अन = भवन
औ + अ = आव पौ + अन = पावन
4. औ + ई = आव नौ + एक = नाविक
2. व्यंजन संधि: व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं।
उदाहरण —
1. दिक् + गज = दिग्गज
2. सत् + वाणी = सवाणी
3. अच् + अन्त = अजन्त
4. षट् + दर्शन = षड्दर्शन
5. वाक् + जाल = वाग्जाल
6. तत् + रूप = तद्रूप
3. विसर्ग संधि: स्वरों अथवा व्यंजनों के साथ विसर्ग (:) के मेल से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
उदाहरण —
1. निः + चर्य = निश्चय
2. निः + कपट = निष्कपट
3. निः + रस = नीरस
4. दुः + गंध = दुर्गंध
5. मनः + रथ = मनोरथ
6. पुरः + हित = पुरोहित
व्याकरण समास
समास में दो स्वतंत्रं शब्दों का योग होता है। कम से कम शब्दों के प्रयोग से अधिक अर्थ बताने की संक्षिप्त विधि को समास कहते हैं। दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बननेवाला शब्द समस्त पद कहलाता है। समास के विभिन्न पदों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं।
समास छः प्रकार के होते हैं
1. अव्ययीभाव समास
2. कर्मधारय समास
3. तत्पुरुष समास
4. द्विगु समास
5. द्वन्द्व समास
6. बहुव्रीहि समास
1. अव्ययीभाव समास —
अव्ययीभाव का शाब्दिक अर्थ है- अव्यय हो जाना । जिस समास में पहला पद अव्यय हो तथा उसके समस्तपद भी अव्ययी बन जाये, उसे अव्ययीभाव न | समास कहते हैं। अव्ययीभाव समास में पहला पद प्रधान होता है।
जैसे —
विग्रह सामासिक शब्द पहला पद अव्यय
जन्म से लेकर – आजन्म – आ
खटके के बिना – बेखटके – बे
पेट भर – भरपेट – भर
जैसा संभव हो – यथासंभव – यथा
बिना जाने – अनजाने – अन
2. कर्मधारय समास —
इस समास के बाद (उत्तर पद) प्रधान होता है। इसमें विशेषण-विशेष्य (एक शब्द विशेषण, दूसरा विशेष्य) या उपमेय-उपमान का सम्बन्ध होता है। अर्थात्, दोनों में से एक शब्द की उपमा दूसरे से दी जाती है या तुलना की जाती है।
जैसे —
• पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य
उदाहरण —
पहला पद दुसरा पद समस्त पद : विग्रह
सत – धर्म – सद्धर्म – सत है जो धर्म
पीत – अम्बर – पीतांबर – पीत(पीला) – है जे अम्बर
नील – कंठ – नीलकंठ – नील है जो कंठ
• पहला पदे उपमान तथा दूसरा पद उपमेय
उदाहरण —
पहला पद दूसरा पद समस्त पद विग्रह
कनक – लती – कनकलता – कनक के समान लता
चन्द्र – मुख – चन्द्रमुख – चन्द्र के समान मुख
• पहला पद उपमेय तथा दूसरा पद उपमान
उदाहरण —
पहला पद दूसरा पद समस्त पद विग्रह
मुख चन्द्र मुखचन्द्र चन्द्रमा रूपी मुख
कर कमल करकमल कमल रूपी कर
3. तत्पुरुष समास —
जिस समास में उत्तर पद (दूसरा पद) प्रधान हो, वह तत्पुरुष समास के नाम से जाना जाता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच आनेवाले परसर्गों (को, के द्वारा, के लिए, से, का, की, के, में, पर) का लोप हो जाता है।
जैसे —
जन्म की शती-जन्मशती, यहाँ परसर्ग की का
लोप हो गया है और समस्तपद बना है
जन्मशती।
कारकों की विभक्तियों के नाम के अनुसार
तत्पुरुष समास के छः भेद किये गये हैं
• कर्म तत्पुरुष- कर्म कारक की विभक्ति’को’ का लोप
जैसे —
स्वर्ग को प्राप्त – स्वर्गप्राप्त
ग्रंथ को लिखनेवाला – ग्रंथकार
गगन को चूमनेवाला – गगनचुम्बी
चिड़िया को मारनेवाला – चिड़ियामार
परलोक को गमन – परलोकगमन
• करण तत्पुरुष — करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप
जैसे —
अकाल से पीड़ित – अकालपीडित
सूर के द्वारा कृत – सूरकृते
शक्ति से संपन्न – शक्तिसंपन्न
रेखा के द्वारा अंकित – रेखांकित
अश्रु से पूर्ण – अश्रुपूर्ण
• संप्रदान तत्पुरुष- संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ का लोप
जैसे–
सत के लिए आग्रह – सत्याग्रह
राह के लिए खर्च – राहखर्च
सभा के लिए भवन – सभाभवन
देश के लिए भक्ति – देशभक्ति
देश के लिए प्रेम – देशप्रेम
गुरु के लिए दक्षिणा – गुरुदक्षिणा
• अपादान तत्पुरुष- अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ का लोप
जैसे–
धन से हीन – धनहीन
जन्म से अंधा – जन्मांध
पथ से भ्रष्ट – पथभ्रष्ट
देश से निकाला – देशनिकाला
बन्धन से मुक्त – बन्धनमुक्त
धर्म से विमुख – धर्मविमुख
• सम्बन्ध तत्पुरुष- सम्बन्ध कारक की विभक्ति ‘का, की, के’ का लोप
जैसे–
प्रेम का सागर – प्रेमसागर
भू का दान – भूदान
देश का वासी – देशवासी
राजा की सभा – राजसभा
जल की धारा – जलधारा
• अधिकरण तत्पुरुष- अधिकरण कारक की विभक्ति में’, ‘पर’ का लोप
जैसे —
आप पर बीती – आपबीती
कार्य में कुशल – कार्यकुशल
दान में वीर – दानवीर
शरण में आगत – शरणागत
नर में श्रेष्ठ – नरश्रेष्ठ
4. द्विगु समास —
इस समास में पहला पद संख्यावाची होता है।
यह समस्त शब्द समूहवाची भी होता है।
जैसे —
सात सौ (दोहों)का समूह सतसई
तीन धाराएँ त्रिधारा
पाँच वटों का समूह पंचवटी
तीन वेणियों का समूह त्रिवेणी
सौ वर्षों का समूह शताब्दी
चार राहों का समूह चौराहा
बारह मासों का समूह बारामासा
5. द्वन्द्व समास —
ज़िस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं, कोई गौण पद नहीं होता, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। इसमें दो शब्दों को मिलानेवाले समुच्चय बोधकों (और, तथा, यो, अथवा, एवं) का लोप हो जाता है।
जैसे
विग्रह समस्तपद
सीता और राम – सीता – राम
पाप अथवा पुण्य पाप – पुण्य
सुबह और शाम सुबह – शाम
सुख या दुख सुख – दुख
दाल और रोटी दाल – रोटी
इधर और उधर इधर – उधर
दो और चार दो – चार
भला या बुरा भला – बुरा
6. बहुव्रीहि समास —
जिस समास में समस्तपद में कोई भी पद प्रधान न होकर अन्य कोई पद प्रधान हो, उसे बहुव्रीहि समास के नाम से जाना जाता है। बहुव्रीहि समास में विग्रह करने पर अन्त में जिसका, जिसके, जिसकी या वाला, वाले, वाली आते हैं।
जैसे —
• मृग के लोचनों के समान नयन हैं जिसके – मृगनयनी
• महान है आत्मा जिसकी – महात्मा
• घन के समान श्याम है जो – घनश्याम
• श्वेत अम्बर (वस्त्रों) वाली (सरस्वती) – श्वेताम्बरी
• लम्बा है उदर जिसका (गणेश) – लम्बोदर
• चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके (विष्णु) – चक्रपाणि
• तीन हैं नेत्र जसके (शिव) – त्रिनेत्र
• दस हैं आनन (मुँह) जिसके (रावण) – दशानन
• नील है कण्ठ जिसका (शिव) – नीलकण्ठ
व्याकरण अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
नीचे अनेक शब्दों के एक शब्द दिया जा रहा है।
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द का प्रयोग करने पर भाषा सारगर्भ बनती है।
अनेक शब्द एक शब्द
1. जो बहुत जानता है। – बहुज्ञ
2. जो अल्प (कम) जानता है – अल्पज्ञ
3. जो सब कुछ जानता है – सर्वज्ञ
4. जो जानने को उत्सुक है – जिज्ञासु
5. जो पहले भी नहीं देखा गया – अदृष्टपूर्व
6. जो पहले कभी नहीं हुआ – अभूतपूर्व
7. जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता है निरीश्वरवाद – नास्तिक
8. जो ईश्वर में विश्वास रखता है ईश्वरवाद – आस्तिक
9. जो व्याकरण जानता है – वैयाकरण
10. जो कुछ नहीं जानता है – अज्ञ
11. जो किये हुए उपकार की हत्या (नाश) करता – कृतघ्न
12. जो किये हुए उपकार को जानता (मानता) – कृतज्ञ
13. जो पहले कभी नहीं देखा गया- अभूतपूर्व
14. जो युद्ध में स्थिर रहता है – युधिष्ठिर
15. जो टालमटोल या विलम्ब से काम करे – दीर्घसूत्री
16. जो सव्य अर्थात् बायें हाथ से (हथियार वगैरह चलाने में) सधा हुआ हो – सव्यसाची
17. जो जरायु (गर्भ की थैली) से जनमता है। – जरायुज
18. जो स्वेद (पसीने) से जनमता है – स्वेदज
19. जो धरती फाड़कर जनमता है – उभिज
20. जो अण्डे से जनमता है – अण्डज
21. जो विक्ष भर का बन्धु है – विक्षबन्ध
22. जिस के नख सूप के समान हों – शूर्पणखा (रावण की बहन)
23. जिस के पाणि(हाथ)में वीणा हो -वीणापाणि
24. जो हमेशा खड्ग हाथ में लिये तैयार रहता है। – खड्गहस्त।
25. जो हाथ से (खूब देनेवाला) मुक्त है। – मुक्तहस्त
26. जो आसानी से पचता है. – लघुपाक
27. जो कठिनाइयों से पचता है – गुरुपाक
28. जो नाटक सूत्र धारण (संचालन) करता है। – सूत्रधार
29. अति वर्षा होना – अतिवृष्टि
30. जो पुरुष धुर (घर सँभालने वाली पत्नी)से (उसके मर जाने के कारण विहीन हो – विधुर
31. जिस स्त्री का धव (पति) मर गया हो – विधवा
32. जिसे पढ न जा सके -अपठ्य, अपाठ्य
33. जिसे सरलता से पढ़ा जा सके – सुपठ, सुपाठ्य
34. जिसका उदर लम्बा है – लम्बोदर (गणेश)
35. जिसका जन्म अन्त्य (निम्र) जाति में हुआ हो। – अन्त्यज
36. जिसके दस आनन (मुख) हैं। – दशानन (रावण)
37. जिसके शेखर (सिर) पर चन्द्रमा हो – चन्द्रशेखर
38. मरने न होना – अनावृष्टि
39. मरने की इच्छा – मुमूर्षा
40. जीने की इच्छा – जिजीविषा
41. जानने की इच्छा – जिज्ञासा
42. पीने की इच्छा – पिपासा
43. भोजन करने की इच्छा – बुभुक्षा
44. दो वेदों को जाननेवाला – द्विवेदी
45. तीन वेदों को जाननेवाला – त्रिवेदी
46. चार वेदों को जाननेवाला – चतुर्वेदी
47. मेघ की तरह नाद करनेवाला – मेघनाद
48. गुरु के समीप रहनेवाला विद्यार्थी – अन्तेवासी
49. भटकते रहने के चरित्रवाला – यात्यावार
50. मनन करने योग्य – मननीय
51. पढने योग्य – पठनीय
52. अभ्यास करने योग्य – अभ्यसनीय
वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखना :
1. कविता लिखनेवाला – कवि
2. निबन्ध लिखनेवाला – निबन्धकार
3. लेख लिखनेवाला – लेखक
4. कहानी लिखनेवाला – कहानीकार
5. उपन्यास लिखनेवाला- उपन्यासकार
6. शिकार करनेवाला – शिकारी
7. कपडे धोनेवाला – धोबी
8. सब्जी बेचनेवालु – सब्जीवाली
9. कपडे बुननेवाला – जुलाहा
10. बहुत बोलनेवाला – भाषणकार
11. जो पति-पत्नी हो – दम्पति
12. जिसकी संतान न हो- निस्संतान
13. राह पर चलनेवाला – राहगीर
14. जो पढ़ा-लिखा न हो- अनपढ़
15. निबंध लिखनेवाला – निबंधकार
16. कहानी लिखनेवाला – कथाकार, कहानीकार
17. नाटक लिखनेवाला – नाटककार,
18. काव्य-कविता लिखनेवाला – कवि
19. उपन्यास लिखनेवाला- उपन्यासकार
20. जिसका होना या करना कठिन हो – दुःसाध्य
21. जिसमें संदेह नहीं हो- नि:संदेह
22. जो कभी तप्त नहीं होता हो – अतप्त
व्याकरण मुहावरे और कहावतें (लोकोक्तियाँ)
मुहावरेः
मुहावरे की विशेषताएँ:
• मुहावरा एक से अधिक शब्दों की रचना है, जो अपने मूल शाब्दिक अर्थ को छोड़कर दूसरा अर्थ देता है।
• मुहावरे का वाक्य में जब प्रयोग किया जाता है, तो लिंग, वचन, कारक आदि के अनुसार उसकी क्रिया बदल जाती है।
मुहावरे अर्थ
1. फूले न समाना – बहुत प्रसन्न होना
2. अंधे की लाठी – एक मात्र सहारा
3. आँसू पोंछना – सांत्वना देना
4. अंधा बनाना – मूर्ख बनाना।
5. अँधेरा छाना – कोई उपाय न सूझना।
6. अंगार बनना – क्रोध में आना।
7. अचार करना – सड़ाना।
8. अड़चन डालना – बाधा उपस्थित करना।
9. अपने पाँव पर खड़े होना – आत्मनिर्भर होना।
10. आग उगलना – अतशय क्रोध।
11. आग में कूद पड़ना- जोखिम उठाना।
12. आसमान से बातें करना -अत्यन्त ऊँचा होना।
13. आँसू पोंछना – ढाढ़स बँधाना।
14. ईन्ट से ईन्ट बजाना- निस्तोनाबूद करना।
15. उठा न रखना – स्वीकार करना।
16. उल्लू सीधा करना – काम बना लेना।
17. एक न चलना – कोई उपाय न दिखना।
18. कगज काला करना- बेमतलब लिखे जाना।
19. कौड़ी का तीन होना – तुच्छ होना।
20. खराद पर चढ़ना – वश में या जाँच में आना।
21. खलल डालना – विघ्न डालना।
22. गूलर का फूल होना – दुर्लभ होना।
23. घास खोदना – निरर्थक काम करना।
24. घी के दिये जलाना- आनन्द मनाना।
25. घोड़ा बेचकर सोना- बेफिक्र होकर सोना।
26. चार चाँद लगना – और सुन्दर लगना।
27. चल निकलना – जमना।
28. चौकड़ी भूल जाना-. राह न सूझना।
29. जले पर नमक छिड़कना – दुःख पर दुःख देना।
30. जान छुड़ाना – पीछा छुड़ाना।
31. जान पर खेलना – वीरता का काम करना।
32. झंडा गाड़ना – फतह कर लेना।
33. तिल का ताड़ करना -बहुत बढ़ाकर कहना।
34. तूती बोलना – खूब चलती होना।
35. थूक से सत्तु सानना- अत्यन्त कृपण होना।
36. दाल में काला होना- संदेह की स्थिति होना।
37. दिल दरिया होना – उदार होना।
38. दिल्ली दूर होना – कार्य में विलम्ब होना।
39. दूकान बढ़ाना – दूकान बन्द करना।
40. धता बताना – टाल देना।
41. नौ-दो ग्यारह होना- भाग जाना।
42. पत्थर पर दूब जमाना -असम्भव बात करना।
43. पानी रखना – इज्जत बचाना।
44. पानी-पानी होना – लज्जित होना।
45. पापड़ बेलना – कष्ट झेलना।
46. पारा चढ़ना – गुस्सा होना।
47. मैदान मारना – विजयी होना।
48. रंग में भंग पड़ना – आनन्द में पड़ना।
49. लोहा मानना – श्रेष्ठता स्वीकार करना।
50. सफेद झूठ बोलना – बिलकुल झूठ बोलना।
51. सिक्का जमना – धाक जमना।
52. सितारा चमकना – तरक्की करना।
53. हजामत बनाना – मूर्ख बनाकर ठगना।
54. हृदय पसीजना – दया से भर जाना।
लोकोक्तियाँ ( कहावतें)
लोक में प्रचलित उक्ति को लोकोक्ति अथवा कहावत कहते हैं। सामाजिक जीवन के अनुभव के आधार पर लोकोक्तियाँ बनती हैं। लोकोक्तियाँ वाक्य का अंग न बनकर प्रायः पूर्ण वाक्य होती हैं।
लोकोक्तियाँ अर्थ
1. अपना हाथ जगन्नाथ- स्वयं किया कार्य सब से अच्छा होता है।
2. आप भला तो जग भला- अच्छे को सभी अच्छे लगते हैं।
3. घर का भेदी लंका ढाए – आपस की फूट से : सर्व नाश होता है।
4. अधजल गगरी छलकत जाये – थोड़ा हासिल सोने पर घमंड होना।
5. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता – कोई बड़ा कार्य एक आदमी के वश की बात नहीं।
6. अब पछताये होत क्या चिड़िया चुग गई खेर – काम का समय बीत जाने पर पछताने से क्या लाभ?
7. अशर्फी की लूट, कोयले पर छाप – बहुमूल्य वस्तुएँ तो नष्ट होने को छोड़ दी गयीं, पर साधारण वस्तुओं की रक्षा का प्रयत्न ।
8. आम का आम, गुठली का दाम – दुहरा फायदा उठाना।
9. आये थे हरिभजन को, ओटने लगे कपास – जिस काम को करने आये, वह किया नहीं और दूसरे बुरे या तुच्छ काम में उलझ जाना।
10. आँख का अंधा, नाम नयनसुख – गुण के विपरीत नाम।
11. उलटे चोर कोतवाल को डाँटे – दोषी निर्दोष पर कलंक लगाये।
12. ऊँट के मुँह में जीरा -जरूरत से बहुत कम।
13. ऊँची दुकान, फीके पकवान – केवल बाहरी चमक-दमक, भीतर खोखलापन।
14. ऊँट किस करवट बैठता है – लाभ किस पक्ष को होता है।
15. एक पंथ दो काज – एक साथ दो लाभ।
16. एक म्यान में दो तलवार – दो प्रतिकूल स्वभाव वाले व्यक्तियों का एक साथ निवास।
17. एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा – बुरे के साथ बुरे का मिल जाना।
18. अंधों में काना राजा- अज्ञकनियों के बीच थोड़ी समझ के व्यक्ति का आदर होना।
19. काला अक्षर भैंस बराबर निरक्षर भट्टाचार्य ।
20. का वर्षा जब कृषि सुखाने – अवसर बीत जाने पर प्रयत्न करना।
21. खग जाने खग ही की भाषा – अपने-जैसे लोगों के विषय में पूरी जानकारी होना।
22. खोदा पहाड़, निकली चुहिया – अत्यधिक परिश्रम के पश्चात् तुच्छ फल की प्राप्ति ।
23. गरजे सो, बरसे नहीं – डींग हाँकनेवाले से ज्यादा काम नहीं होता।
24. गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध – घर का व्यक्ति चाहे कितना भी योग्य हो, घर में आदर नहीं पाता; किन्तु बाहर के साधारण व्यक्ति का भी सम्मान होता है।
25. घर के भेदी लंकादाह – आपसी वैमनस्य से बड़ी हानि होती है।
26. घर की मुर्गी दाल बराबर – परिचित चीज का विशेष मूल्य नहीं होता।
27. चोर की दाढ़ी में तिनका – अपराधी की मुद्रा से अपराध का पता चल जाता है।
28. छोटा मुँह, बड़ी बात – अपनी योग्यता से अधिक बातें करना।
29. छबूंदर के सिर पर चमेली का तेल – अयोग्य के लिए अच्छी वस्तु का प्रयोग।
30. छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ सुबहानल्लाह – छोटे से भी अधिक बडे में दोष होना।
31. जस दूलह तस बनी बारात – जैसे खुद, वैसे साथी।
32. जाके पाँव न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई – वैयक्तिक अनुभव न रहने पर दूसरे के कष्ट का अनुभव नहीं होता।
33. जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ – निरंतर परिश्रम से सफलता मिलती है।
34. जैसा देश, वसा भेष- परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए।
35. जिसकी लाठी उसकी भैंस- बलवान सब कुछ कर लेता है।
36. जल में रहे, मगर से बैर – जिसके मातहत हैं, उसी का विरोध करना।
37. जैसी करनी, वैसी भरनी – जैसा कार्य करेंगे, वैसा फल पायेंगे।
38. जैसी बहे बयार, पीठ तब तैयी कीजै – समय देखकर काम करना चाहिए।
39. जिस पत्तल में खाना, उसी पत्तल में छेद करना – उपकार न मानना।
40. झोपड़ी में रहना और महल का सपना देखना – हैसियत से परे सोचना। ।
41. टट्टी की ओट शिकार खेलना – गुप्त रूप से बुरा कार्य करना।
42. डूबते को तिनके का सहारा – असहाय के लिए थोड़ी सहायता भी बहुत होती है।
43. तुम डाल-डाल, मैं पात-पात – किसी की चाल को अच्छी तरह जानना।
44. दाल-भात में मूसलचन्द – बिना मतलब दखल देना।
45. दोनों हाथ लड्डू – हर तरह से लाभ।
46. दुधार गाय की लताड़ भली – जिससे फायदा होता है, उसकी झिड़कियाँ भी सहनी होती है।
47. दूध को जला मट्ठा फेंक-फेंककर पीता है – एक बार का धोखा खाया व्यक्ति हमेशा सतर्क रहता है।
48. देशी मुर्गी विलायती बोल- बेमेल बातों का मेल।
49. दूर का ढ़ाल सुहावन – दूर से कोई चीज सुहावनी मालूम पड़ती है।
50. धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का – कहीं का न रहना।
51. नक्कारखाने में तूती की आवाजे – सुनवाई न होना।
52. नीम हकीम खतरे जान – अयोग्य व्यक्ति से लाभ नहीं, वरन् हानि होती है।
53. नाम बड़े दर्शन थोड़े – मिथ्या प्रसिद्धि।
54. बन्दर क्या जाने आदी (अदरक) का स्वाद – किसी चीज के न जाननेवाले के द्वारा उस चीज की कद्र न किया जाना।
55. बैल न कूदे, कूदे तंगी – स्वामी के बल पर सेवक का दुस्साहस करना।
56. भई गति साँप-छछैदर केरी – असमंजस में पड़ जाना।
57. भागते भूत की लँगोटी भली – जहाँ कुछ न मिलने की आशा न हो, वहाँ थोड़ा भी मिल जाय, तो खुशी होनी चाहिए।
58. भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस रही पगुराय – मूर्ख के सामने गुणों का बखान व्यर्थ है।
59. मियाँ की दौड़ मस्जिद तक – सीमित क्षेत्र तक, ही आना-जाना।
60. मार-मारकर हकीम बनाना – जबर्दस्ती आगे बढ़ाना।
61. मान न मान, मैं तेरा मेहमान – बलात् किसी पर भार डालना।
62. मुँह में राम बगल में छुरी – कपट आचरण।
63. मियाँ की दाढ़ी वाहवाही में गयी – मिथ्या प्रशंसा के फेर में अपना ही नाश।
64. मन चंगा, तो कठौती में गंगा – मन की शुद्धि ही सबसे बढ़कर है।
65. मेंढकी को जुकाम होना -बडों की असम्भव नकल करना।
66. रस्सी जल गयी, पर ऐंठन न गयी स्थिति बिगड़ जाने पर भी घमंड बना रहना।
67. लूट में चर्चा नफा- न पाने वाली स्थिति में | भी कुछ पा जाना।
68. शौकीन बुढ़िया, चटाई का लहँगा – बुरी तरह का शौक।
69. सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज को – जीवनभर पाप करते रहे और अन्त में साधुता का आडम्बर रचना।
70. सब धान बाइस पसेरी- अच्छे-बुरे को एक समझना।
71. साँप मरे, ने लाठी टूटे -नुकसान के बिना ही काम हो जाना।
72. हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या?
73. हाथ सुमरनी, बगल कतरनी – कपट व्यवहार।
74. होनहार बिरवान के होत चिकने पात – बड़े लोगों के शुभ लक्षण उनके बाल्य काल में ही झलकते हैं।
व्याकरण लिंग
‘लिंग’ का अर्थ चिह्न है। नाम बोधक शब्द पुरुष जाति का हो तो पुल्लिंग और स्त्री जाति का हो तो स्त्रीलिंग कहते हैं।
• जिन प्राणिवाचक शब्दों से पुरुष बोधक हो, उसे पुल्लिंग कहते हैं।
जैसे- लड़का, पिता, पुत्र
• स्त्री बोधक हो तो स्त्रीलिंग कहते हैं।
जैसे- लड़की, माता, पुत्री
• कुछ मनुष्येत्तर प्राणिवाचक संज्ञा शब्द सदैव पुल्लिंग या स्त्रीलिंग में रहते हैं।
जैसे-
पुल्लिंग : पक्षी, शिशु, उल्लू चीता, खटमल
स्त्रीलिंग : मक्खी, चींटी, कोयल, चील
अन्यलिंग रूप लिखना:
1. कवि – कवयित्री
2. युवक – युवती
3. मोर – मोरनी
4. मालिक – मालकिन
5. बच्चा – बच्ची
6. श्रीमान – श्रीमती
7. कुत्ता – कुतिया
8. पिता – माता
9. महिला – पुरुष
10. बादशाह – बेगम
11. देवता – देवी
12. पिता – माता
13. वृद्धा – वृद्ध
14. औरत – मर्द
15. नौकर – नौकरानी
16. बालक – बालिका
17. नौकर – नौकरानी
18. लेखक-लेखिका
19. भिखारी – भिखारिन
20. बूढा – बूढी
21. मयूर – मयूरी
22. पति – पत्नी
23. माँ – बाप
24. आदमी – औरत
25. लेखक-लेखिका
26. राजा – रानी
27. बहन- भाई
28. बेटी – बेटा
29. नर – मादा
30. मौसा – मौसी
31. तोता – तोती
32. बेटा – बेटी
33. चाचा – चाची
34. दादा – दादी
35. बकरा – बकरी
36. अकेला – अकेली
37. छोकरा – छोकरी
38. अब्बाजान – अम्मीजान
39. लेखक – लेखिका
40. अध्यापक – अध्यापिका
41. छात्र – छात्रा
42. प्रिय – प्रिया
43. सुत – सुता
44. बूढ़ा – बूढ़ी
45. नाना – नानी
46. बकरा – बकरी
47. साला – साली
48. नायक – नायिका
49. संपादक – संपादकी
50. लेखक – लेखिका
51. बुड्डा – बुड़िया
52. डिब्बा – डिब्बिया
53. पिताजी – माताजी
54. पंडित – पंडिताइन
55. राजा – रानी
56. माता – पिता
57. गाय – भैंस
58. स्त्री – पुरुष
59. माता – पिता
60. भाई-बहन
61. घोड़ा – घोड़ी
62. मामा – मामी
63. नाना – नानी
64. दास – दासी
65. ब्राह्मण – ब्राह्मणी
66. पुतला – पुतली
67. भाई – बहन
68. बुड्डा – बुड्डी
69. शिक्षक – शिक्षिका
70. भक्त – भक्तिन
71. कृष्ण – कृष्णा
72. शिष्य – शिष्या
73. बाल – बाला
74. दादा – दादी
75. घोडा – घोडी
76. गधा – गधी
77. लड़का – लड़की
78. सेवक – सेविका
79. बालक – बालिका
80. कुत्ता – कुतिया
81. गुड्डा – गुडिया
82. बहन – भाई
83. विद्यार्थी – विद्यार्थिनी
84. आदमी – औरत
85. बालक – बालिका
86. लडका – लडकी
87. देव – देवी
88. बेटा – बेटी
89. पत्नी – पति
व्याकरण कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध किसी अन्य शब्द के साथ प्रकट होता है, उस रूप को कारक कहते हैं।
कारक को सूचित करने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय लगाते हैं, उन्हें विभक्ति कहते हैं। विभक्ति के लगने पर ही कोई शब्द कारक पद पाता है और वाक्य में प्रयुक्त होने योग्य बनता है।
कारक के भेद: हिन्दी में आठ कारक हैं।
नीचे कारक, उसका अर्थ और विभक्तियाँ हैं।
कारक कार्य विभक्तियाँ
1. कर्ता क्रिया को करनेवाला ने अथवा चिह्न रहित ।
2. कर्म जिस पर क्रिया का को या चिह्न प्रभाव पडे रहित।
3. करण जिस साधन से क्रिया हो से, के साथ, के कारण ।
4. संप्रदान जिसके लिए क्रिया के लिए, को, के की हुई हो । वास्ते।
5. अपादान जिससे अलग हो से (अलगाव सूचक) ।
6. संबंध क्रिया के अतिरिक्त का, के, की। अन्य पदों से संबंध रा, रे, री। बनानेवाला ना, ने, नी।
7. अधिकरण क्रिया करने का में, पर। स्थान अथवा आधार
8. संबोधन जिस संज्ञा को पुकारा अरे, रे, ओ, अरी, जाए।
कारक चिह्न उदाहरण:
1. क्रर्ता ने राम ने दरवाजा खोला।
2. कर्म को मैं ने राम को बुलाया।
3. करण से मैं ने कुत्ते को लाठी से मारा।
4. संप्रदान को मैं पिताजी के लिए कैपड़ा लाया। (के लिए)
5. अपादान से पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं।
6. संबंध का, के, की यह राम की पुस्तक है।
7. अधिकरण में, पर शेर वन में पाया जाता है। किताब मेज़ पर है।
8. संबोधन हे! हो !अरे! अरे ! इधर आओ। ओह! यह क्या हुआ।
व्याकरण ‘कि’ और ‘की’ का प्रयोग
‘कि’ का प्रयोग :
इन दोनों का शब्द-वर्ग और अर्थ बिलकुल अलग-अलग हैं। हिन्दी व्याकरण में इनकी जानकारी अत्यंत आवश्यक है। व्याकरण की दृष्टि में ‘कि’ एक अव्यय (अविकारी) है, जिसका रूप कभी नहीं बदलता। ‘कि’ संयोजक या विभाजक अव्यय होने के कारण वाक्यों के बीच में ही प्रयोग होता है। दो वाक्यों को जोड़ने के लिए इस अव्यय का प्रयोग होता है। इसे समुच्चय बोधक कहते हैं।
उदा–
1. चाउण्डराय की माता ने यह प्रतिज्ञा की कि बाहुबलि के दर्शन के लिए बगैर दूध तक नहीं पीऊँगी।
2. अध्यापक ने कहा कि कर्नाटक की राजधानी बेंगलूर है।
3. उमा ने कहा कि मैं दिल्ली जाऊँगी।
4. राम आया कि कृष्ण?
‘की’ का प्रयोग :
‘की’ का प्रयोग निम्नलिखित तीन स्तरों पर होता है।
1. संबंध कारक का विकारी परसर्ग के रूप में।
2. संबंध सूचक के पूर्व प्रयोग।
3. करना क्रिया के भूतकालिक रूप में।
1. संबंध कारक का विकारी परसर्ग के रूप में।
जिससे एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध का
बोध हो, उसे संबंधकारक कहते हैं। संबंधकारक
विकारी परसर्ग (प्रत्यय) का, के, की,
में ‘की’ जो स्त्रीलिंग संज्ञा के पहले प्रयुक्त होता है।
जैसे-नरेंद्र की माता भुवनेश्वरी देवी।
दु:खी जनों की सहायता करना।
2. संबंध सूचक के पूर्व प्रयोगः
वाक्य में कुछे संबंध सूचक अव्यय के पूर्व ‘की” विभक्ति आती है।
जैसे-की तरफ़, की ओर, की तरह, की भाँति
• मैं उसकी तरफ़ देख रहा था।
• अमरीका भारत की तरफ से लड़ रही थी।
व्याकरण विलोमार्थक शब्द
परिभाषा- किसी शब्द का विलोम बतलाने वाले शब्द को विलोमार्थक शब्द कहते हैं; जैसे- अच्छाबुरा, ज्ञान-अज्ञान आदि। उपर्युक्त उदाहरणों में ‘अच्छा’ और ‘ज्ञान’ के विलोम अर्थ देने वाले क्रमशः ‘बुरा’ और ‘अज्ञान’ शब्द हैं।
विलोमार्थक शब्द को ही विपरीतार्थक शब्द कहते हैं। विलोमार्थक शब्द मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं —
1. वे शब्द जो अ, अन्, वि, अनु, प्रति, अव, अप, .. आदि अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्ग, जोड़ने से एक दूसरे के विलोम या विपरीत अर्थ देते हैं। जैसे —
1. अभिज्ञ – अनभिज्ञ
2. उन्नति – अवनति
3. अर्थ – अनर्थ
4. एक – अनेक
5. अनुरक्त – विरक्त
6. एकता – अनेकता
7. अनुराग – विराग
8. औचित्य – अनौचित्य
9. आगते — अनागत
10. ऋत – अनृत
11. आचार – अनाचार
12. औदात्य – अनौदात्य
13. आदर – अनादर.
14. कीर्ति – अपकीर्ति
15. आवश्यक- अनावश्यक
16. कृतज्ञ – अकृतज्ञ
17. आकर्षण- विकर्षण
18. खाद्य. – अखाद्य
19. आरोह – अवरोह
20. गुण – अवगुण
21. आस्था – अनास्था
22. ज्ञान – अज्ञान
23. आहार – अनाहार
24. घात – प्रतिघात
25. इच्छा – अनिच्छा
26. चल -अचल
27. इष्ट – अनिष्ट
28. चिन्मय – अचिन्मय
29. उदार – अनुदार
30. चेतन – अचेतन
31. उचित – अनुचित
32. जाति – विजाति
33. उत्तीर्ण – अनुत्तीर्ण
34. धर्म – अधर्म
35. उदात्त – अनुदात्त
36. धार्मिक – अधार्मिक
37. उपयुक्त – अनुपयुक्त
38. नक्षर – अनक्षर
39. उपस्थित- अनुपस्थित
40. नित्य – अनित्य
41. परिमित – अपरिमित
42. शान्ति – अशान्ति
43. पूर्ण – अपूर्ण
44. शुभ – अशुभ
45. प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष
46. श्लील – अश्लील
47. प्रसन्न – अप्रसन्न
48. संघटन – विघटन
49. योगः – वियोग
50. संतोष – असंतोष
51. योग्य – अयोग्य
52. सक्षम – अक्षम
53. रत – विरत
54. सत्य – असत्य
55. राग – विराग
56. सफलता – असफलता
57. लौकिक – अलौकिक
58. सभ्य – असभ्य
59. वाद – प्रतिवाद
60. सुर – असुर
61. विश्वास – अविश्वास
62. स्पष्ट – अस्पष्ट
63. शकुन – अपशकुन
64. स्वस्थ – अस्वस्थ
2. वे शब्द जो अन्यान्य उपसर्ग बदलने या सामाजिक प्रथम पद के समासगत रूप के कारण एक-दूसरे के विलोम या विपरीत अर्थ देते हैं। जैसे —
1. अज्ञ – विज्ञ
2. अतिवृष्टि – अनावृष्टि
3. अनुराग – विराग
4. अनुकूल – प्रतिकूल
5. अपमान – सम्मान
6. अवनति – उन्नति
7. आगत – अनागत
8. आदान – प्रदान
9. सामिष – निरामिष
10. आहार – अनाहार
11. उत्कर्ष – अपकर्ष
12. उत्कृष्ट – निकृष्ट
13. उन्मीलन- निमीलन
14. उपकार – अपकार
15. कुप्रबन्ध- सुप्रबन्ध
16. कृतज्ञ – कृतघ्न
17. खंडन – मंडन
18. नास्तिक – आस्तिक
19. निरर्थक – सार्थक
20. निरामिष – सामिष
21. निक्षचे – सचेष्ट
22. निष्काम – सकाम
23. परतंत्र – स्वतंत्र
24. प्रवृत्ति – निवृत्ति
25. प्राचीन – अर्वाचीन
26. माने – अपमान
27. यश – अपयश
28. विधवा – सधवा
29. विपत्ति – संपत्ति
30. विपन्न – सम्पन्न
31. वैमनस्य – सौमनस्य
32. संकल्प – विकल्प
33. संघटन – विघटन
34. संयोग – वियोग
35. सच्चरित्र – दुश्चरित्र
36. सजीव – निर्जीव
37. सज्जन – दुर्जन
38. सदाचार – दुराचार
39. सपूत – कपूत
40. सबल – निर्बल
41. सरस – नीरस
42. सहयोगी – प्रतियोगी
43. साकार – निराकार
44. सुकाल – दुष्काल
45. सुगन्धि – दुर्गन्धि
46. सुबोध – दुर्बोध
47. सुभग – दुर्भग
48. सुमार्ग -कुमार्ग
49. सुलभ – दुर्लभ
50. सौभाग्य -दुर्भाग्य
3. वे शब्द जो भिन्न शब्दयुग्मों में ही एक-दूसरे के विलोम या विपरीत अर्थ देते हैं। रचना की दृष्टि से इनमें सम्बन्ध नहीं होता है;
जैसे–
1. अन्त – आदि
2. अन्तरन्ग – बहिरन्ग
3. अन्धकार- प्रकाश
4. अच्छा – बुरा
5. अधिक – कम
6. आकाश – पाताल
7. आजाद – गुलाम ।
8. आलोक – अंधकार |
9. उत्तम – अधम
10. उत्थान – पतन
11. उतार – चढ़ाव
12. उच्च – निम्न
13. एडी – चोटी
14. ऋजु – वक्र
15. कठिन – सरल
16. कनिष्ठ – च्येष्ठ
17. कड़वा – मीठा
18. कृत्रिम – प्रकृत
19. कृपण – दानी
20. क्षुद्र – महान् ।
21. खरा – खोटा
22. गीला – सूखा
23. गुप्त – प्रकट
24. गुरु – लघु
25. घृणा – प्रेम
26. जन्म – मरण
27. जल – स्थल
28. जड़ – चेतन
29. झूठ – सच
30. तीव्र – मन्द
31. त्याज्य – ग्राह्य
32. थोक – खुदरा
33. दक्षिण – वाम
34. दिन – रात ।
35. देव – दानव
36. धनी – दरिद्र
37. ध्वंस – निर्माण
38. निकट – दूर
39. निद्रा – जागरण
40. निन्दा – स्तुति
41. नूतन – पुरातन
42. न्यून – अधिक
43. पक्का – कच्चा
44. पाप – पुण्य
45. पालक – संहारक
46. प्रश्न – उत्तर
47. प्राचीन – अर्वाचीन
48. बन्धन – मुक्ति
49. बच्चा – बूढ़ा
50. बाढ़ – सूखा
51. भला – बुरा
52. भारी – हल्का
53. मर्त्य – अमर, अमर्त्य
54. मनुज – दनुज
55. महँगा – ससता
56. महात्मा – दुरात्मा
57. माँ – बाप
58. मुख्या – गौण ।
59. यथार्थ – कल्पित
60. यौवन – वार्धक्य
61. राग – द्वेष
62. राजा – प्रजा
63. राम – रावण
64. लाभ – हानि
65. विरह – मिलन
66. विशेष – सामान्य
67. विष – अमृत
68. विस्तार – संक्षेप
69. वृद्धि – ह्रास
70. शत्रु – मित्र
71. शीत – उष्ण,
72. श्रव्य -दृश्य
73. श्रीगणेश – इतिश्री
74. संधि -विग्रह
75. सत्कार – तिरस्कार
76. समर्थन – विरोध
77. सरल – कठिन
78. सुख-दुःख
79. सुबह – शाम
80. सृष्टि – प्रलय
81. सोना – जागना
82. स्वर्ग – नरक
83. स्थूल – सूक्ष्म
84. स्वकीया – परकीया
85. हर्ष – विषाद
86. ह्रस्व – दीर्घ
विलोम शब्द लिखना:
1. प्यार × द्वेष
2. पराया × अपना
3. ज्यादा × कम,
4. थोडा स्वर्ग × नरक
5. सुखी × दुःखी
6. सुखद × दु:खद
7. प्रकाश × अंधेरा
8. बुझना × जलना
9. दिवस × रात
10. रोना × हँसना
11. अपना × पराया
12. चढ़ना × उतरना
13. बढ़ना × घटना
14. लघु × भारी
15. गौरव × अगौरव
16. जीवन × मरण
17. दु:ख × सुख
18. सत्य × असत्य
19. धर्म × अधर्म
20. स्वदेश × विदेश
21. समर्थ × असमर्थ
22. सबल × निर्बल
23. ज्ञान × अज्ञान
24. सुगंध × दुर्गंध
25. दूर × पास
26. अंत × आदि
27. धीरे × जल्दी
28. मुरझाना × विकसित
29. गिरना × उठना
30. सुबह × शाम
31. असहयोग × सहयोग
32. बहुत × कम
33. ऊपर × नीचे
34. हँसी × रुलाई
35. सच × झूठ
36. आरंभ × अंत्य, अंत
37. दुश्मन × दोस्त
38. बाहर × अंदर, भीतर
39. साँझ × सवेरे,
40. सुबह पसंद × नापसंद
41. सुंदर × असुंदर,
42. कुरूप बैठ × उठ
43. पास × दूर
44. छोटे × बडे
45. रात × दिन
46. चैन × बेचैन
47. बहुल × कम
48. शाम × सुबह
49. सफल × असफल,
50. विफल अच्छा × बुरा
51. बडा × छोटा
52. अपनी × पराया
53. रोना × हँसना
54. अपराध × निरपराध
55. भक्षक × रक्षक
56. पास × दूर
57. शुद्ध × अशुद्ध
58. काला × गोरा
59. वीर × कायर
60. चतुर × मंद
61. स्पष्ट × अस्पष्ट
62. आगे × पीछे
63. धर्म × अधर्म
64. असंभव × संभव
65. बदबू × खुशबू
66. रक्षक × भक्षक
67. भीतर × बाहर
68. विश्वास × अविश्वास
69. सच्चा × झूठा
70. शुभ × अशुभ
71. तृप्त × अतृप्त
72. आनंद × दुःख
73. आवश्यक × अनावश्यक
74. ज्ञान × अज्ञान
75. उन्नति × अवनति
76. आदर × अनादर
77. उतरना × चढना
78. विशाल × संकीर्ण
79. हँसना × रोना
80. अतृप्त × तृप्त
81. आकर्षक × निराकर्षक
82. प्रसन्न × अप्रसन्न
83. चेतन × जड थोडा × बहुत
84. सौभाग्यशाली × दौर्भाग्यशाली, दुर्भाग्यशाली
85. अच्छा × बुरा
86. भेद्य × अभेद्य
87. बडा × छोटा
88. गाँव × शहर
89. आगे × पीछे
90. देस्त × दुश्मन
91. आगे × पीछे
92. लंबा × चौडा
93. कठिन × आसान
94. निराशा × आशा
95. शांत × अशांत
96. सबेरा × शाम
97. निश्चय × अनिश्चय
98. निकट × दूर
99. बडी × छोटी
100. आगे × पीछे
101. भीतर × बाहर
102. सुख× दुःख
103. ऊपर × नीचे
104. जीवन × मरण
105. दिन × रात
106. सुख× दुःख
107. नया × पुराना
108. पवित्र × अपवित्र
109. विश्वास × अविश्वास
110. सूर्योदय × सूर्यास्त
111. बड़ा × छोटा
112. प्रसिद्ध × अप्रसिद्ध
113. औपचारिक × अनौपचारिक
114. आरम्भ × अन्त
115. पूर्व × अपूर्व
116. निकट × दूर
117. पाप × पुण्य
118. निराशा × आशा
119. स्वीकार× अस्वीकार
120. होश × बेहोश
121. बढना × घटना
122. स्थिर × अस्थिर
123. मुमकिन × नामुमकिन
124. वरदान × अभिशाप
125. दुरुपयोग× सदुपयोग
126. अनुपयुक्त × उपयुक्त
127. निकट × दूर
128. विश्वास × अविश्वास
129. दिन × रात
130. प्रिय × अप्रिय
131. भीतर × बाहर
132. संतोष × असंतोष
133. चढना × उतरना
134. स्वस्थता × अस्वस्थता
135. आदर × अनादर
136. ईमान × बेईमान
137. उपयोगी × निरुपयोगी
138. होश × बेहोश
139. उपस्थिति × अनुपस्थिति
140. खबर × बेखबर
141. उचित × अनुचित
142. रोजगार × बेरोजगर
143. पीछे × आगे
144. खरीदना × बेचना
145. लेना × देना
146. आना × जाना
147. शांति× अशांति
148. गरीब × अमीर
149. सुन्दर असुन्दर
150. विदेश × स्वदेश
151. आदि अनादि, अन्त
152. सजीव × निर्जीव
153. सदाचार × बुरे आचार
154. आयात × निर्यात
155. आगमन × निर्गमन
156. रात × दिन
157. जवाब × सवाल
158. बेचना × खरीदना
159. सज्जन× दुर्जन
160. जन्म × मरण, मृत्यु
161. आसान × कठिण,
162. जटिल गरीब × अमीर
163. अपना × पराया
164. छोटे × बडे
165. बडा × छोटा
166. अच्छा × बुरा
167. दूर × पास
168. बडा × छोटा
169. एक × अनेक
170. सुख × दुःख
171. पाना × खोना
172. सवाल × जवाब
173. हार × जीत
174. चतुर × मूर्ख
175. प्रसन्न × अप्रसन्न
176. दोस्त× दुश्मन
177. बुद्धिमान × बुद्धिहीन
178. गोरा × काला
179. रात × दिन
180. उजियारा × अंधियारा
181. लंबा × तगडा
182. नया × पुराना
183. भीतर × बाहर
184. पास × दूरचढ़ना × उतरना
185. एकता × अनेकता दिन × रात
186. दूर × पास
187. उतरना × चढ़ना
188. आगे × पीछे
189. वीर × कायर
190. पराजय × जय
191. मित्रता × शत्रुता
192. कठिन × सरल
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