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रचना निबन्ध-लेखन - 9 वीं कक्षा की तीसरी भाषा हिंदी पाठ्यपुस्तक प्रश्नावली

 रचना निबन्ध-लेखन

1. चरित्र-बल।

विचार-बिंदुः चरित्र का अर्थ और महत्त्व – चरित्र-बल – उदाहरण – चरित्र-बल का प्रभाव।
‘चरित्र’ का अर्थ है ‘चाल-चलन’ या व्यक्तित्व के गुण। यद्यपि चरित्र बुरा भी हो सकता है और श्रेष्ठ भी, परंतु समाज में प्रायः अच्छे चरित्रवाले व्यक्ति को ही चरित्रवान कहते हैं। अतः ‘चरित्र’ शब्द स्वतंत्र रूप में अच्छे चरित्र के लिए प्रयुक्त होता है। चरित्रवान का अर्थ है – ईमानदार, सच्चा, दयावान, करुणावान, कर्मठ, सात्विक, शुद्ध औक कपटहीन व्यक्ति।
चरित्र-बलः सच्चरित्रता में अपार बल होता है। जिस व्यक्ति में प्रेम, मानवता, दया, करुणा, विनय आदि गुण समा जाते हैं, वह शक्ति का भंडार बन जाता है। उसमें से ज्योति की किरणें फूटने लगती हैं। जैसे सूर्य का तेज समस्त दिशाओं को आलोकित कर देता है, उसी प्रकार चरित्र-बल जीवन के सभी क्षेत्रों को शक्ति, उत्साह और प्रकाश से भर देता है। कारण स्पष्ट है। ईमानदारी, सच्चाई, निष्कपटता, मानवता आदि गुण स्वयं में बहुत शक्तिवान हैं। यदि ये सभी शक्ति के कण किसी एक व्यक्ति के व्यक्तित्व में पुंजीभूत हो जाएँ तो फिर महाशक्ति का विस्फोट हो सकता है।
उदाहरणः महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व को लें। उन्होंने जिस महानता को अर्जित किया, उसके पीछे उनके चारित्रिक गुण ही थे। असत्य का विरोध, अहिंसा, अन्याय का सविनय बहिष्कार, सच्चाई, मानवता आदि गुणों के कारण ही उन्होंने पूरे देश में अपने व्यक्तित्व की छाप अंकित की। इसी चरित्र-बल के कारण ही अंग्रेज़ सरकार उनसे डरती थी। उन्होंने अपने चरित्र-बल से केवल स्वयं को ही नहीं, अपितु पूरे भारत को आंदोलित कर दिया।
चरित्र-बल का प्रभाव अत्यंत तीव्रता से होता है। किसी चरित्रवान व्यक्ति के सामने खड़े होकर हमारी कमजोरियाँ नष्ट होने लगती हैं। यही कारण है कि चरित्र-संपन्न लोगों के सामने व्यसनी लोग इस तरह झुक जाते हैं जैसे सूरज के निकलने पर अँधेरा हार मान लेता है। इतिहास प्रमाण है कि भगवान बुद्ध के सामने डाकू अंगुलिमाल ने घुटने टेक दिए थे, क्रांतिकारी जयप्रकाश नारायण के सामने असंख्य डाकुओं ने हथियार डाल दिए थे। इन सबसे यही प्रमाणित होता है कि चरित्र-बल में अपार शक्ति है।

2. पुस्तकों का महत्व।

विचार-बिंदुः लाभ – प्रभाव – पुस्तकें किसी देश की अमर निधि होती हैं – पुस्तकें अस्त्र हैं – मनुष्य का मित्र।
लाभः पुस्तकों का महत्व मूल्य रत्नों से भी अधिक है, क्योंकि रत्न बाहरी चमक-दमक दिखाते हैं, जबकि पुस्तकें हृदय को उज्जवल करती हैं। अच्छी पुस्तकें मनुष्य को पशु से देवता बनाती हैं, उसकी सात्विक वृत्तियों को जागृत कर उसे पथभ्रष्ट होने से बचाती हैं। श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य, समाज तथा राष्ट्र का मार्गदर्शन करती हैं। पुस्तकों का हमारे मन-मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव पड़ता है।
प्रभावः संसार के इतिहास पर दृष्टिपात करने पर देखते हैं कि जितनी भी महान विभूतियाँ हुई हैं, उन पर किसी-न-किसी अंश में अच्छी पुस्तकों का प्रभाव था। महात्मा गाँधी भगवद्गीता, टालस्टाय तथा अमेरिका के संत थोरो के साहित्य से अत्यधिक प्रभावित थे। लेनिन में क्रांति की भावना मार्क्स के साहित्य को पढ़कर जगी थी।
पुस्तकें किसी देश की अमर निधि होती हैं: किसी जाति के उत्कर्ष अथवा अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है। प्राचीन ग्रीक संस्कृति कितनी उच्च और महान थी, इसका पता हमें उसके साहित्य से चलता है। गुप्तकाल भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है क्योंकि उस काल में सर्वोत्कृष्ट पुस्तकों की रचना हुई। कालिदास इस युग के महान साहित्यकार थे।
पुस्तकें अस्त्र हैं: विचारों के युद्ध में पुस्तकें ही अस्त्र हैं। पुस्तकों में लिखे विचार संपूर्ण समाज की काया पलट देते हैं। समाज में जब भी कोई परिवर्तन आता है अथवा क्रांति उपस्थित होती है, उसके मूल में कोई विचारधारा ही होती है।
मनुष्य का मित्रः एक विद्वान की उक्ति है – “सच्चे मित्रों के चुनाव के पश्चात् सर्वप्रथम एवं प्रधान आवश्यकता है – उत्कृष्ट पुस्तकों का चुनाव।’ जो पुस्तकें हमें अधिक विचारने को बाध्य करती हैं, वे ही हमारी सबसे बड़ी सहायक हैं। वे मनुष्य को सच्चा सुख और शांति प्रदान करती हैं। थामस ए. केपिस ने एक बार कहा था – “मैंने प्रत्येक स्थान पर विश्राम खोजा, किंतु वह एकांत कोने में बैठकर पुस्तकें पढ़ने के अतिरिक्त कहीं प्राप्त न हो सका।” पुस्तक-प्रेमी सबसे अधिक सुखी होता है।

3. पर्यावरण प्रदूषण।

मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिये प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा है। इससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और प्रदूषण फैलता जा रहा है। प्रदूषण का अर्थ है – दूषित वातावरण । पर्यावरण के तीन अंग हैं – वायु, जल और भूमि। इनके अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण भी आजकल एक समस्या हो गई है। महानगरों में आज अत्यधिक वायु-प्रदूषण हो रहा है।
वायु-प्रदूषण के दो मुख्य कारण हैं – एक तो यह कि कारखानों और वाहनों से निकलने वाला धुआँ। इसमें कार्बनमोनोक्साइड गैस होती है। यह शुद्ध हवा में मिलकर उसे प्रदूषित कर देती है। कारखानों से निकलने वाला विषैला जल, शुद्ध जल को प्रदूषित कर देता है। जनसंख्या की अभिवृद्धि के कारण घरों की गंदी नालियों का पानी भी नालों व नदियों में मिल जाता है। गाँवों के लोग तालाबों
में नहाना-धोना करते हैं, जानवरों को भी नहलाते हैं। इससे भी जल-प्रदूषण होता है और बीमारियाँ फैल जाती हैं। बड़े-बड़े महानगरों में कूड़े-कचरे के कारण भी प्रदूषण व बीमारियाँ फैलती हैं।
आजकल किसान अपने खेतों में अधिक फसल प्राप्त करने की लालच में अनेक प्रकार के रासायनिक खादों को छिड़कते हैं। परिणामतः भूमि प्रदूषण होता है। शहरों में कारखानों के भोंपू, वाहनों तथा लाऊडस्पीकरों की तेज ध्वनियों से ध्वनि-प्रदूषण भी होता है। इससे कभी-कभी लोगों के बहरे होने का खतरा भी पैदा होता है। नये-नये वैज्ञानिक प्रयोगों के कारण आज धरती पर अत्यधिक गर्मी होने लगी है।
हाल ही में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जो उथल-पुथल मची थी, बादल फटे थे, भूकंप आया था और बाढ़ का जो भयंकर प्रकोप देखा गया था, वह सब इसी असंतुलन के कारण हुआ था।
यदि मनुष्य ने ठीक समय पर समझदारी से काम नहीं लिया तो सब-कुछ तबाह हो जायेगा। अतः हमें सचेत हो जाना चाहिए। वृक्षारोपण को अधिक महत्व देना चाहिए। गंदे पानी की नालियों को नदी में नहीं मिलने देना चाहिए। अनावश्यक शोरगुल को रोकने का प्रयास करना चाहिए। पेड़ों को नहीं काटना चाहिए। परमाणु-विस्फोट आदि को रोकने का प्रयास होना चाहिए। तभी हम प्रदूषण की समस्या को हल कर पायेंगे।

4. राष्ट्रीय एकता।

आज हमारा भारत देश स्वतंत्र है। इस स्वतंत्रता को पाने के लिए हम सभी भारतवासियों ने एकता के सूत्र में बंधकर ही प्रयास किया था। क्योंकि एकता में बहुत बड़ी ताकत होती है। अलग-अलग पाँच लकड़ियों को मिनटों में तोड़ा जा सकता है, परन्तु उन्हीं पाँच लकड़ियों के एक गढे को तोड़ना नामुमकिन है। यह है एकता की शक्ति।
व्यक्ति-व्यक्ति में एकता, समाज-समाज में एकता जैसे होती है, वैसे ही ‘राष्ट्रीय-एकता’ की बहुत आवश्यकता है। बिना एकता के कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता। बिना एकता के कोई संस्था अथवा संगठन भी खड़ा नहीं हो सकता। जिस देश में एकता नहीं होती है, वह कदापि विकास नहीं कर सकता, वह कदापि राष्ट्रोन्नति में सफल नहीं हो सकता।
हमारे देश में करीब पाँच सौ वर्षों तक मुगलों ने और करीब दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों ने राज्य किया। इसका कारण भी यही है कि हममें (भारतीयों में) उस समय एकता नहीं थी। उस अनेकता के कारण ही हम गुलाम रहे और हमने बहुत-कुछ खोया।
जब हम जागृत हुए, हमारा सोया हुआ भारत जाग उठा . और हमने एकता का महामंत्र फूंका तो नतीजा यह हुआ कि शत्रु भाग खड़े हुए। एकता से आजादी मिली, एकता से हमने विकास किया, एकता से हम आगे बढे और एकता से ही हम फिर विश्वगुरु बनने के लिए अग्रसर हैं। संगठन में शक्ति होती है, यह समझकर ही हम ‘राष्ट्रीय एकता’ के प्रहरी बने हुए हैं

5. स्वच्छ भारत अभियान।

स्वस्थ जीवन जीने के लिए स्वच्छता का विशेष महत्व है। आरोग्य को नष्ट करने के जितने भी कारण हैं, उनमें गन्दगी प्रमुख है। बीमारियाँ गन्दगी में ही पलती हैं। जहाँ कूड़े-कचरे के ढेर जमा रहते हैं, मल-मूत्र सड़ता है, नालियों में कीचड़ भरी रहती है, सीलन और साड़न बनी रहती है, वहीं मक्खी, पिस्सू, खटमल जैसे बीमारियाँ उत्पन्न करने वाले कीड़े उत्पन्न होते हैं। कहना न होगा कि हैजा, मलेरिया, दस्त, पेट के कीड़े, चेचक, खुजली, रक्त-विकार जैसे कितने ही रोग इन मक्खी, मच्छर जैसे कीड़ों से ही फैलते हैं।
महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था। उन्होंने ‘स्वच्छ भारत’ का सपना देखा था। वे चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करें। महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को पूरा करने के लिए, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य अगले पांच वर्ष में स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है ताकि बापू की 150 वीं जयंती को इस लक्ष्य की प्राप्ति के रूप में मनाया जा सके।
शहरी क्षेत्रों के लिए स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख समुदायिक शौचालय, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय, और प्रत्येक शहर में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य पांच वर्षों में भारत को खुला शौच से मुक्त बनाना है। अभियान के तहत देश में लगभग 11 करोड़ 11 लाख शौचालयों के निर्माण के लिए एक लाख चौंतीस हज़ार करोड़ रुपए खर्च किये जाएंगे।
स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य केवल आसपास की सफाई करना ही नहीं है अपितु नागरिकों की सहभागिता से अधिक-सेअधिक पेड़ लगाना, कचरा मुक्त वातावरण बनाना, शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराकर एक स्वच्छ भारत का निर्माण करना है। देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत का निर्माण करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
सरकार जन समुदाय की सक्रिय भागीदारी के बिना किसी भी अभियान में सफलता प्राप्त नहीं कर सकती। इसके लिए व्यापक जन चेतन कार्यक्रम चलाना होगा। स्कूली विद्यार्थीयों को अपने घर तथा पड़ोस के सभी घरों में शौचालय का होना तथा इसका उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए। उनको अपने घर तथा आस पड़ोस में अच्छी आदतों को फैलाना चाहिए। घर, गली, स्कूल तथा अन्य सभी सार्वजनिक स्थानों पर गन्दगी नहीं फैलाना चाहिए तथा कचरा पात्र में ही कचरा डालना चाहिए। खुले में शौच नहीं जाना चाहिए।
अस्वच्छ भारत की तस्वीरें भारतीयों के लिए अक्सर शर्मिंदगी की वजह बन जाती है। इसलिए स्वच्छ भारत के निर्माण एवं देश की छवि सुधारने का यह समय और अवसर है। यह अभियान न केवल नागरिकों को स्वच्छता संबंधी आढ़तें अपनाने बल्कि हमारे देश की छवि स्वच्छता के लिए तत्परता से काम कर रहे देश के रूप में बनाने में भी मदद करेगा।

6. स्वतंत्रता-दिवस।

स्वतंत्रता दिवस अर्थात् 15 अगस्त हमारे देश के इतिहास का यह स्वर्णिम-दिन है। इसी दिन हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से छुटकारा पाकर स्वतंत्र हुआ था। लालकिले पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू जी ने तिरंगा झंडा फहराया था।
देश की आजादी के लिए भारतीयों ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी थी। हजारों-लाखों के बलिदान के पश्चात् हमें यह आजादी मिली है। इस स्वतंत्रता के लिए 1857 को सबसे पहले क्रांति हुई थी। उसी से प्रेरणा लेकर, आगे लोकमान्य तिलक, दादाभाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले, लाला लाजपतराय, महात्मा गाँधी जैसे अनेकानेक देशभक्तों ने 1947 तक आन्दोलन किये।
यद्यपि कुछ हद तक गाँधीजी के नेतृत्व में यह सत्य और अहिंसा की लड़ाई थी, फिर भी आजादी की लड़ाई में बहुत-बड़ी संख्या में देशभक्त शहीद हुए हैं। इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए। इस लड़ाई के संदर्भ में अंग्रेजों ने भारतीयों पर बहुत-बड़े अत्याचार किए थे, लाठियाँ बरसाई, देशभक्तों को जेलों में ढूंस दिया और गोलियाँ भी बरसाई गई। अंत में अंग्रेजों को हार माननी पड़ी और वे 15 अगस्त 1947 को अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर चले गए।
तब से प्रतिवर्ष 15 अगस्त को सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। देश के प्रधानमंत्री दिल्ली में राष्ट्रध्वज फहराते हैं। नगर-नगर, गाँव-गाँव में प्रभात-फेरियाँ निकलती हैं। देशभक्ति के गीतों की गूंज हर कहीं सुनाई देती हैं। नेताओं के भाषण होते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन होते हैं। बलिदानियों को स्मरण कर, उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। हमारा कर्तव्य है कि हम इस आजादी को बनाये रखें। देश-द्रोहियों को करारा जवाब दें।

7. खेलों का महत्व।

जीवन में खेलों का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वास्थ्य के लिए खेल जरूरी है। मानसिक शांति के लिए भी खेल जरूरी है। खेल कई तरह के होते हैं। जैसे – देशी खेल और विदेशी खेल। आंतरिक खेल और बाहरी (मैदानी) खेल।
प्रायः देखा जाता है कि गाँवों में गुल्ली-डंडा, लंगड़ी, आँखमिचौनी, चील-झपट, खो-खो, कबड्डी जैसे कई खेल खेले जाते हैं। इन खेलों से मनोरंजन तो होता ही है, साथ-साथ इनसे हमारा शरीर स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट भी रहता है। गाँवों में और भी कई मजेदार खेल खेले जाते हैं।
देशी खेलों के अतिरिक्त विदेशी खेल भी खेले जाते हैं। जैसे – क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबाल आदि। विदेशी खेल देशी खेलों से महँगे होते हैं। खेलों को बढ़ावा देने के लिए स्कूल-कॉलेजों में प्रतियोगिताएँ, टूर्नामेंट आदि होते हैं। जीतनेवाले उत्तम खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं, उनका सम्मान किया जाता है। अनेक बड़ी-बड़ी कंपनियाँ अच्छे खिलाड़ियों को अपने यहाँ नौकरी भी देती हैं।
खेल में खेल की भावना हो तो उसका कुछ मजा ही अलग है। खेल भी शिक्षा का आवश्यक अंग माना गया है। इससे खेलों का महत्व बढ़ गया है।

8. कम्प्यूटर।

आज का युग कंप्यूटर का युग है। कंप्यूटर एक ऐसा मशीनी मस्तिष्क है जो ऐसे-ऐसे कार्य करने में सक्षम हैं जो मनुष्य की पहुँच के बाहर हैं। लाखों, करोड़ों व इससे भी अधिक संख्याओं की गणनाएँ यह पलक झपकते ही करने की क्षमता रखता है।
सबसे बड़ी विशेषता इसकी यह है कि भले ही मनुष्य इसके उपयोग में किसी प्रकार की कोई गलती कर दे, लेकिन यह सही सूचना देने में पूर्णतया सफल होता है।
आज कंप्यूटर सभी कार्यालयों, विभागों, विद्यालयों, बैंक, . रेल्वे-स्टेशन, बस-स्टैंड, हवाई अड्डों, दुकानों तक में पूर्ण सहयोगी है। मनोरंजन के साधनों में भी इसका जवाब नहीं। बच्चों के अलावा बड़े भी इसके मनोरंजन से प्रसन्न रहते हैं।
किसी भी व्यक्ति को यदि बंद कमरे में कंप्यूटर देकर बिठा दिया जाए तो शायद वह स्वतंत्र घूमने वाले प्राणी से अधिक प्रसन्न होगा। वैज्ञानिक क्षेत्र में देश-विदेश व अंतरिक्ष के कार्य कंप्यूटर के सहारे ही होते हैं। अंतरिक्ष के संबंध भी यही स्थापित करता है। इंटरनेट इसकी विशेष देन है। कुछ ही क्षणों में हम अपने प्रत्येक कार्य हेतु पूरे विश्व से सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में हर बीमारी की जाँच कंप्यूटर बखूबी करता है। लेकिन कई बार बच्चे व कुछ लोग इसका गलत प्रयोग कर स्वयं ही गुमराह होते हैं, जोकि गलत है। हमें इस उपयोगी साधन का सकारात्मक रूप से ही प्रयोग करना चाहिए।

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