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तुलसी के दोहे - 10 वीं कक्षा की तीसरी भाषा हिंदी पाठ्यपुस्तक प्रश्नावली

  तुलसी के दोहे

1.तुलसीदास मुख को क्यों मानते हैं ?
उत्तर: तुलसीदास शरीर को क्षणिक मानते हैं।

2.मुखिया को किसके समान रहना चाहिए ?
उत्तर: मुखिया को मुख के समान रहना चाहिए।

3.हंस का गुण कैसा होता है ?
उत्तर: हंस का गुण दूध को ग्रहण करके पानी को छोडता हैं। हंस का गुण यह है कि वह सारहीन वस्तु को छोडकर अच्छे को अपनाता है।

4.मुख किसका पालन-पोषण करता है ?
उत्तर: मुख शरीर के सकल अंगों का पालन-पोषण | करता है।

5.दया किसका मूल है ?
उत्तर: दया धर्म का मूल है।

6. तुलसीदास किस शाखा के कवि हैं ?
उत्तर: तुलसीदास राम-भक्ति शाखा के कवि हैं।

7.तुलसीदास के माता-पिता का नाम क्या था ?
उत्तर: तुलसीदास के माता-पिता का नाम हुलसी और आत्माराम दुबे था।

8.तुलसीदास के बचपन का नाम क्या था ?
उत्तर: तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था।

9.पाप का मूल :क्या है ?
उत्तर: पाप का मूल अभिमान है।

10.तुलसीदास के अनुसार विपत्ति के साथी कौन हैं ?
उत्तर: तुलसीदास के अनुसार विपत्ति के साथी विद्या, विनय और विवेक हैं।

II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :

1.मुखिया को मुख के समान होना चाहिए। कैसे ?
उत्तर: मुख या मुँह खाने पीने का काम अकेला करता है, लेकिन उसके खाने पीने के द्वारा वह शरीर को सारे अंगों का पालन-पोषण करता है। इसी तरह मुखिया को मुख के समान विवेकवान होना चाहिए। वह काम अपनी तरह से करें लेकिन उसका फल सभी में बाँटे। इस प्रकार मुखिया को मुख के समान होना चाहिए।

2.मनुष्य को हंस की तरह क्या करना चाहिए ?
उत्तर: भगवान ने इस संसार को जड़-चेतन और गुण-दोष युक्त बनाया है। संसार में अच्छे और बुरे या सार-असार भरे हुए हैं। सज्जनों या संतों को चाहिए कि वे संसार से सार वस्तु का (गुणों का) ग्रहण करें और निस्सार वस्तु का (दोषों का) त्याग कर दें। जैसे कि हंस दूध में निहित पानी को छोड देता है और दूध को स्वीकार लेता है वैसे ही मनुष्य को हंस की तरह विकारों को त्यागकर सद्गुणों को अपनाना चाहिए।

3.मनुष्य के जीवन में प्रकाश कब फैलता है ?
उत्तर: जिस तरह देहरी पर दिया रखने से घर के भीतर तथा आँगन में प्रकाश फैलता है, उसी तरह राम नाम जपने से मानव की आंतरिक और बाह्य शुद्धि होती है, अर्थात् जीभ देहरी है और राम-नाम दीपक है। इससे अंदर और बाहर (लोक और परलोक) प्रकाश फैलता है। रामनाम का जप करते रहने से मनुष्य के जीवन में प्रकाश फैलता है।

III. अनुरूपता :

1.दया : धर्म का मूल :: पाप : ——
उत्तर: अभिमान का मूल

2.परिहरि : त्यागना :: करतार : ——
उत्तर: सृष्टिकर्ता

3.जीह : जीभ :: देहरी : ——
उत्तर: दहलीज

IV. भावार्थ लिखिए :

1. मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक॥
उत्तर: मुखिया को मुख या मुँह के समान होना चाहिए। इस प्रकार तुलसीदासजी कहते हैं कि मुँह खाने पीने का काम अकेला करता है, लेकिन वह जो खाता पीता है, उससे शरीर के सारे अंगों का पालन पोषण करता है। इसलिए मुखिया को भी ऐसे ही विवेकवान होकर वह अपना काम अपने तरह से करे लेकिन उसका फल सभी में बाँटे।

2.तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसो एक।
उत्तर: तुलसीदासजी कहते हैं कि विद्या, विनय, विक ये विपत्ति के साथी। जब मनुष्य पर विपत्ती पडती है। तब विद्या, विनय और विवेक ही उसका साथ निभाते हैं। जो राम पर विश्वास रखता है वह साहसी, सत्यव्रत तथा सुकृतवान बनता है।

V. दोहे कंठस्थ कीजिए:

दोहा - 1
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक 'भाषा- भारती' के पाठ 10 'नीति के दोहे' से लिया गया है। इसके रचनाकार कबीरदास जी हैं।
प्रसंग – दिये गए दोहे में कवि ने सत्य की महत्ता का वर्णन किया है।
भावार्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि सत्य बोलने के समान कोई अन्य बड़ी तपस्या (तप) नहीं है और झूठ बोलने से बढ़कर कोई भी पाप नहीं है। कबीर दास जी आगे कहते हैं कि जिसके हृदय में सत्यता है अर्थात् जिसका हृदय सच्चे भावों से परिपूर्ण है, वहाँ भगवान स्वयं विराजित होते हैं।

VI. जोडकर लिखिए :

1. विश्व कीन्ह - विकार
2. परिहरि वारि  -  करतार
3. जब लग घट -  राम भरोसो एक
4. सुसत्यव्रत - में प्राण

उत्तर – जोडकर लिखना
1. विश्व कीन्ह -  करतार
2. परिहरि वारि -  विकार
3. जब लग घट - में प्राण
4. सुसत्यव्रत - राम भरोसो एक

VII. पूर्ण कीजिए:

1.मुखिया मुख सों चाहिए, —– —–
2.पालै पोसै सकल अंग, —— —– —–
3.राम नाम मनि दीप धरु, —– —–
4.तुलसी भीतर बाहिरौ, —– —– —–

उत्तर:
1.खान पान को एक।
2.तुलसी सहित विवेक।
3.जीह देहरी द्वार।
4.जो चाहसी उजियार।

VIII. उचित विलोम शब्द पर सही (✓) का | निशान लगाइए :

तुलसी के दोहे कवि परिचय:
गोस्वामी तुलसीदास (सन् 1532-1623) हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। तुलसीदास का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के राजापुर में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ, तब उन्होंने राम नाम का उच्चारण किया था। इसलिए उनके बचपन का नाम ‘रामबोला’ पड़ा। तुलसीदास भगवान राम के अनन्य भक्त थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘रामचरित मानस’, ‘विनय-पत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’, ‘कवितावली’ आदि। सन् 1623 में काशी में उनका देहांत हुआ।

दोहों का आशय :
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने दोहों में भक्ति और नैतिकता को प्रतिपादित किया है। उन्होंने प्रस्तुत दोहों में विवेकपूर्ण व्यवहार, संतों के लक्षण, दया-धर्म का महत्व, विपत्ति के साथी राम पर भरोसा, अन्तर और बाह्य के प्रकाश के बारे में बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है।

दोहों का सारांश / भावार्थ :

1) मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ॥
तुलसीदास मुख अर्थात् मुँह और मुखिया दोनों के स्वभाव की समानता दर्शाते हुए लिखते हैं कि मुखिया को मुँह के समान होना चाहिए। मुँह खाने-पीने का काम अकेला करता है, लेकिन वह जो खाता-पीता है उससे शरीर के सारे अंगों का पालन-पोषण करता है। तुलसी की राय में मुखिया को भी ऐसे ही विवेकवान होना चाहिए कि वह काम इस तरह से करें उसका फल समाज के सब लोगों को समान रूप से मिले।

2) जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार।
संत-हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार ॥
तुलसीदास संत की हंस पक्षी के साथ तुलना करते हुए उसके स्वभाव का परिचय देते हैं – सृष्टिकर्ता ने इस संसार को जड़, चेतन और गुण-दोष से मिलाकर बनाया है। अर्थात्, इस संसार में अच्छे-बुरे (सार-निस्सार), समझ-नासमझ के रूप में अनेक गुण-दोष भरे हुए हैं। हंस पक्षी जिस प्रकार दूध में निहित पानी को छोड़कर केवल दूध मात्र पी लेता है, उसी प्रकार संत भी हंस की तरह संसार में निहित गुण-दोषों में केवल गुणों को ही अपनाते हैं।

3) दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छाँडिये, जब लग घट में प्राण ॥
तुलसीदास ने स्पष्टतः बताया है कि दया धर्म का मूल है और अभिमान पाप का। इसलिए कवि कहते हैं कि जब तक शरीर में प्राण हैं, तब तक मनुष्य को अपना अभिमान छोड़कर दयावान बने रहना चाहिए।

4) तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसो एक ॥
तुलसीदास जी कह रहे हैं कि मनुष्य पर जब विपत्ति पड़ती है तब विद्या, विनय तथा विवेक ही उसका साथ निभाते हैं। जो राम पर भरोसा करता है, वह साहसी, सत्यव्रती और सुकृतवान बनता है।

5) राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ जो चाहसी उजियार ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस तरह देहरी पर दिया रखने से घर के भीतर तथा आँगन में प्रकाश फैलता है, उसी तरह राम-नाम जपने से मनुष्य की आंतरिक और बाह्य शुद्धि होती है।

ತುಳಸಿಕೆ ದೋಹೆ

ಈ ದೋಹೆಯಲ್ಲಿ ಮುಖಂಡನು ಬಾಯಿಯಂತೆ ಇರಬೇಕೆಂದು ತುಳಸಿದಾಸರು ಹೇಳುತ್ತಾರೆ. ಮನುಷ್ಯನ ಶರೀರದಲ್ಲಿ ಬಾಯಿಯು ತಿನ್ನುವ ಕುಡಿಯುವ ಕೆಲಸವನ್ನು ಒಂಟಿಯಾಗಿಯೇ ಮಾಡುತ್ತದೆ. ಆದರೆ ಅದು ತಿನ್ನೋದು ಮತ್ತು ಕುಡಿಯುವುದರ ಮುಖಾಂತರ ಶರೀರದ ಎಲ್ಲಾ ಅಂಗಾಂಗಗಳ ಪಾಲನೆ ಘೋಷಣೆ ಮಾಡುತ್ತದೆ. ಇದೇ ರೀತಿಯಾಗಿ ಮುಖಂಡನು ಸಹ ಹೀಗೆಯೇ ವಿವೇಕ ಉಳ್ಳವನ್ನಾಗಿ ಕೆಲಸಗಳನ್ನು ಮಾಡಬೇಕು. ಆತನು ತನ್ನದೇ ಆದ ರೀತಿಯಿಂದ ಕೆಲಸ ಮಾಡಿ ಆದರೆ ಅದರ ಫಲವನ್ನು ಎಲ್ಲರಿಗೂ ಹಂಚಬೇಕು. ಮುಖಂಡನು ವಿವೇಕದಿಂದ ಕೆಲಸಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದರೆ ಎಲ್ಲರಿಗೂ ಸುಖ ಸಿಗುವುದು.

ಇಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ಸಾಧು ಸಂತರು ಹಂಸ ಪಕ್ಷಿಯಂತೆ ಇರಬೇಕೆಂದು ಹೇಳುತ್ತಾರೆ. ದೇವರು ಅಥವಾ ಸೃಷ್ಟಿಕರ್ತನು ಈ ಜಗತ್ತನ್ನು ಸೃಷ್ಟಿಸುವಾಗ ಇಲ್ಲಿ ಜಡ ಚೇತನ ವಸ್ತುಗಳು ಹಾಗೂ ಗುಣ ದೋಷಗಳನ್ನು ತುಂಬಿ, ಎಲ್ಲವನ್ನು ಕೂಡಿಸಿ ಸೃಷ್ಟಿಸಿದ್ದಾನೆ. ಈ ಜಗತ್ತಿನಲ್ಲಿ ಒಳ್ಳೆಯ ಹಾಗೂ ಕೆಟ್ಟ ಜ್ಞಾನ ಹಾಗೂ ಅಜ್ಞಾನ, ಗುಣದೋಷಗಳು ತುಂಬಿವೆ. ಹಂಸ ಪಕ್ಷಿಯು ಸೌರ ವನ್ನು ಹೀರಿ ಸಾರಹೀನ   ವಸ್ತುವನ್ನು ತ್ಯಜಿಸುತ್ತದೆ. ಹೀಗಿಯೇ ಸಂತರು ನೀರಿನಲ್ಲಿರುವ ಕೆಟ್ಟ ವಿಕಾರ ಗುಣಗಳನ್ನು ಬಿಟ್ಟು, ಪರಿತ್ಯಾಗ ಮಾಡಿ ಹಾಲಿನಂತಿರುವ ಒಳ್ಳೆಯ ಗುಣಗಳನ್ನು ಸ್ವೀಕರಿಸುತ್ತಾರೆ.

ತುಳಸಿದಾಸರು ಹೇಳುವಂತೆ ದಯೆಯೇ ಧರ್ಮದ ಮೂಲ ಹಾಗೂ ಅಭಿಮಾನ ಅಥವಾ ಗರ್ವ ಪಾಪದ ಮೂಲವಾಗಿದೆ. ಹಾದುದರಿಂದ ಶರೀರದಲ್ಲಿ ಪ್ರಾಣವಿರುವ ತನಕ ಗರ್ವವನ್ನು ಬಿಟ್ಟು ದಯಾ ಉಳ್ಳವನಾಗಬೇಕು. ಮನುಷ್ಯನ ತನ್ನ ಶರೀರದಲ್ಲಿ ಪ್ರಾಣವಿರುವ ತನಕ ದಯೆಯನ್ನು ಬಿಡಬಾರದು ಎಂದು ತುಳಸಿದಾಸರು ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ.

ಇಲ್ಲಿ ತುಳಸೀದಾಸರು ವಿದ್ಯಾ, ವಿನಯ ಹಾಗೂ ವಿವೇಕದ ಮಹತ್ವವನ್ನು ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ. ಮನುಷ್ಯನಿಗೆ ಸಂಕಟ ಅಥವಾ ವಿಪತ್ತು ಎದುರಾದಾಗ ವಿದ್ಯೆ, ವಿನಯ ಮತ್ತು ವಿವೇಕ ಎಂಬುವುಗಳು ಸಹಾಯಕ್ಕೆ ಬರುತ್ತದೆ ಹಾಗೂ ಇವಾಗ ಇವುಗಳು ಮನುಷ್ಯನ ಅಂಗಡಿಗಳಾಗುತ್ತವೆ. ಇವುಗಳಿಂದ ಸಂಕಟ ಮತ್ತು ವಿಪತ್ತುಗಳು ದೂರವಾಗುತ್ತವೆ. ಯಾರು ರಾಮನ ಮೇಲೆ ವಿಶ್ವಾಸ ಇಡುತ್ತಾರೋ ಅವರು ಸಾಹಸಿ, ಸತ್ಯವಂತ ಹಾಗೂ ಸುಕ್ರತಾ ಗಳನ್ನು ಮಾಡುತ್ತಾರೆ ಎಂದು ತುಳಸಿದಾಸರು ಹೇಳುತ್ತಾರೆ.

ಇಲ್ಲಿ ತುಳಸಿದಾಸರು ರಾಮ ನಾಮದ ಮಹತ್ವವನ್ನು ಅಥವಾ ಮಹಿಮೆಯನ್ನು ಹೇಳಿದ್ದಾರೆ. ಯಾವ ಪ್ರಕಾರವಾಗಿ ಮನೆಯ ಉಸ್ತಿಲ ಮೇಲೆ ದೀಪ ಬಿಟ್ಟಾಗ ಮನೆಯ ಒಳಗೆ ಆಗು ಹೊರಗೆ ಪ್ರಕಾಶ ಹರಡುತ್ತದೆಯೋ ಅದೇ ಪ್ರಕಾರವಾಗಿ ಮನುಷ್ಯನು ತನ್ನ ನಾಲಿಗೆಯ ಮೇಲೆ ರಾಮನಾಮ ರೂಪೇ ಜ್ಯೋತಿಯ ಇದ್ದಾಗ ಮನದ ಒಳಗೆ ಹಾಗೂ ಹೊರಗೆ ಜ್ಞಾನವೆಂಬ ಪ್ರಕಾಶ ಹರಡುತ್ತದೆ. ಮನುಷ್ಯನು ರಾಮ ನಾಮದ ಜಪ ಮಾಡಿದಾಗ ಅಥವಾ ರಾಮನ ಸ್ಮರಣೆ ಮಾಡಿದಾಗ ಮನಸ್ಸಿನ ಅಜ್ಞಾನ ಹಾಗೂ ದೂರಗಿನ ಅಜ್ಞಾನ ದೂರವಾಗಿ, ಆತನ ಅಂತರ್ಯದಲ್ಲಿ ಹಾಗೂ ಬಾಹ್ಯದಲ್ಲಿ ಜ್ಞಾನವು ಅಪರಿಸುತ್ತದೆ.
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